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170...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
हो जाने की भी सम्भावना रहती है। अत: इन सब अनिष्ट सम्भावनाओं से बचने एवं संयम वृद्धि के लिए भिक्षा गमन से पूर्व पात्र का प्रतिलेखन किया जाता है।26
पात्र प्रतिलेखन विधि- पंचवस्तुक एवं यतिदिनचर्या में वर्णित पात्र प्रतिलेखना विधि इस प्रकार है- सर्वप्रथम पात्र और पात्र सम्बन्धी सर्व सामग्री प्रतिलेखना के स्थान पर रखें। फिर ऋतुबद्ध काल (चातुर्मास के सिवाय शेष आठ मास का समय) हो तो पादपोंछन और वर्षाकाल हो तो काष्ठासन (पाट, तख्ता, चौकी आदि) पर बैठें। ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। उसके बाद बैठे-बैठे ही चक्षु आदि इन्द्रियों का उपयोग रखते हए एकाग्रचित्त होकर पात्रों की प्रतिलेखना करें।27
चक्षु आदि इन्द्रियों का उपयोग रखने से तात्पर्य है कि सर्वप्रथम पात्र को दृष्टि से देखें। कदाचित उसमें कोई जीव-जन्तु आदि या कचरा, धूल आदि दिख जाये तो उसे यतनापूर्वक दूर करें। झोली के बाहर जीव दिख जाये तो उन्हें भी यतनापूर्वक दूर करें। यदि चक्षु द्वारा बाहर में किसी प्रकार के जीव दिखाई न दें तो पात्रस्थ जीवों को जानने हेतु श्रोत्रेन्द्रिय का उपयोग करें, पात्र के समीप कान लगाकर सुनें, यदि उसमें भौंरा-भौंरी घुस गये हों और उनके भू-, गुंजार आदि शब्द सुनाई दे रहे हों, तो उन जीवों को विवेक पूर्वक दूर करें। फिर नासिका का उपयोग करते हुए पात्र को सूंघे। यदि कोमल जीव फिरते हुए मृत हो गये हों
और उनका रक्त आदि लगा हुआ हो तो गंध से जानकर दूर करें। जहाँ गंध हो वहाँ रस होता है, इसलिए रसना इन्द्रिय का उपयोग करते हुए यदि कोई दूषित द्रव्य हो तो उसको रस से ज्ञात कर दूर करें। इसी तरह जहाँ रस हो वहाँ गंध होती है। गंध के पुद्गल स्वयं के उच्छ्वास आदि के माध्यम से नासिका को स्पर्श करते हैं, यदि वहाँ कुछ दिखाई दे तो उसे जयणापूर्वक दूर करें। इस तरह स्पर्शेन्द्रिय का भी उपयोग करें। किसी भी जीव-जन्तु की स्पर्श द्वारा जानकारी लेने हेतु पडला पर हाथ रखें। यदि पात्र में चूहा आदि हो तो उसके निःश्वास की वायु शरीर पर लगने से ज्ञात हो जाता है, तब उसे दूर करें। इस प्रकार पाँचों इन्द्रियों का उपयोग करते हुए पात्र प्रतिलेखन करें।28
तत्पश्चात मुखवस्त्रिका से गुच्छों (पात्र बाँधने के ऊनी वस्त्रों) की प्रतिलेखना करें। फिर उन गुच्छों को अंगुलियों में रखकर पडलों की प्रतिलेखना