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प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना सम्बन्धी विधि-नियम... 165
तीन बोलों का चिन्तन करें।
• पक्खोडा - पुनः वधूटक पूर्वक दायें हाथ में गृहीत मुखवस्त्रिका का बायें हाथ पर स्पर्श करवाते हुए कोहनी से हथेली तक तीन बार प्रमार्जना करें, उस समय (17 से 19 ) ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना, चारित्र विराधना परिहरू - ये तीन बोल कहें।
• अक्खोडा - पुनः पूर्ववत मुखवस्त्रिका का बायें हाथ पर स्पर्श न करवाते हुए हथेली से कोहनी तक तीन बार प्रमार्जना करें, उस समय (20 से 22 ) मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरूं- ये तीन बोल कहें।
• पक्खोडा - पुनः पूर्ववत मुखवस्त्रिका का बायें हाथ पर स्पर्श करवाते हुए कोहनी से हथेली तक तीन बार प्रमार्जना करें, उस समय (23 से 25 ) मनोदंड, वचनदंड, कायदंड परिहरूं- ये तीन बोल मन में कहें। 16
इस प्रकार मुखवस्त्रिका प्रतिलेखना के समय 1 दृष्टि प्रतिलेखन + 6 पुरिम + 9 अक्खोडा + 9 पक्खोडा = 25 बार प्रमार्जना होती है।
यहाँ प्रसंगवश छह पुरिम एवं नव अक्खोडा का अधिक स्पष्टीकरण इस प्रकार है- पुरिमा अर्थात विभाग, खोडा अर्थात उपविभाग। इन्हें चद्दर की प्रतिलेखना से इस प्रकार समझें
साधुओं के ओढ़ने की चद्दर की लम्बाई का पूरा माप 5 हाथ और चौड़ाई का पूरा माप 3 हाथ होता है। सर्वप्रथम चद्दर की चौड़ाई को मध्य भाग से मोड़कर दो समान पट कर लें, प्रथम एक पट की चौड़ाई डेढ़ हाथ और लम्बाई 5 हाथ रहेगी। उसके बाद पट की लम्बाई के तीन समान भाग करें, प्रत्येक भाग के ऊपर से नीचे तक तीन-तीन खंड करें। प्रत्येक खंड पर दृष्टि डालकर प्रतिलेखन करें। इसी प्रकार दूसरे पट के भी तीन समान भाग करें और प्रत्येक भाग के ऊपर से नीचे तक तीन-तीन खंड करते हुए प्रत्येक खंड पर दृष्टि डालकर प्रतिलेखन करें। यह चद्दर के एक पार्श्व ( तरफ) की प्रतिलेखना हुई ।
यहाँ प्रतिलेखना में पूरी चद्दर के एक तरफ का भाग 6 भागों में और 18 खंडों में विभक्त किया गया है। इसी प्रकार पूरी चद्दर के दूसरी तरफ का भाग भी 6 भागों में और 18 खंडों में विभक्त कर उसकी प्रतिलेखना की जाये। इस प्रकार एक चद्दर की प्रतिलेखना में बारह भाग (पुरिमा ) और छत्तीस खंड (खोडा) किये जाते हैं।