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160... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
प्रतिलेखना के एकार्थवाची के रूप में आभोग, मार्गणा, गवेषणा, ईहा, अपोह, प्रेक्षण, निरीक्षण, आलोकन और प्रलोकन आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है।2
आचार्य हरिभद्रसूरि रचित पंचवस्तुक ग्रन्थ के अनुसार प्रतिलेखना के सम्बन्ध में कुछ निर्देश ध्यातव्य हैं
वस्त्र प्रतिलेखना विधि
यहाँ प्रारम्भ में वस्त्र प्रतिलेखना की चर्चा करने का मुख्य कारण यह है कि दीक्षा स्वीकार करते समय यथाजात मुद्रा में सर्वप्रथम रजोहरण-मुखवस्त्रिका रूप वस्त्र ही दिये जाते हैं। दूसरा हेतु यह है कि आचारांगसूत्र में भी वस्त्रैषणापात्रैषणा इस क्रम पूर्वक विवेचन किया गया है।
वस्त्र प्रतिलेखना का क्रम - मुनि दिन के प्रथम एवं चतुर्थ प्रहर के प्रतिलेखन काल में सर्वप्रथम मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें, उसके बाद शेष वस्त्रों की प्रतिलेखना करें। 3 यतिदिनचर्या के अनुसार दिन के प्रारम्भ में अर्थात सूर्योदय के पहले वस्त्रादि दस वस्तुओं की इस क्रम से प्रतिलेखना करें1. मुखवस्त्रिका 2. रजोहरण 3-4. दो निषद्या (रजोहरण की डंडी पर लपेटे हुए अन्दर एवं बाहर के दो वस्त्र ) 5. चोलपट्ट (मुनि का अधोवस्त्र) 6-8. तीन वस्त्र (ऊनी कम्बली व दो सूती चद्दर) 9. संथारा (शयन के समय बिछाने योग्य ऊनी आसन) और 10. उत्तरपट्ट (संथारा के ऊपर बिछाया जाने वाला सूती वस्त्र ) | 4 निशीथचूर्णि एवं बृहत्कल्पचूर्णि 5 में ग्यारहवाँ उपकरण 'दण्ड' कहा गया है।
सायंकालीन वस्त्र प्रतिलेखना के सम्बन्ध में इतना विशेष है कि प्रातः काल सूती निशेथिया की प्रतिलेखना करने के पश्चात ऊनमय निशेथिया का प्रतिलेखन करते हैं, जबकि सायंकाल में पहले ऊनी निशेथिया ( ओघारिया) की प्रतिलेखना करते हैं, फिर सूती ओघारिया का प्रतिलेखन करते हैं। शेष वस्त्रों की प्रतिलेखना का क्रम समान है । "
वस्त्र प्रतिलेखना कितनी बार ? जैन श्रमण के लिए दिन में तीन बार वस्त्रादि की प्रतिलेखना करने का निर्देश है। पहली प्रतिलेखना सूर्योदय के पूर्व, दूसरी प्रतिलेखना उग्घाड़ा पौरुषी के समय अर्थात दिन के प्रथम प्रहर का तीन भाग जितना समय बीत जाने पर और तीसरी प्रतिलेखना अपराह्न में अर्थात दिन के तीसरे प्रहर के अन्त में या चौथे प्रहर के प्रारम्भ में करनी चाहिए।