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उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन... 125
ओघनिर्युक्ति में उपधि के समानार्थी शब्द भी बतलाये गये हैं। तदनुसार उपधि, उपग्रह, संग्रह, प्रग्रह, अवग्रह, भंडक, उपकरण, करण आदि शब्द उपधि के अर्थ का ही बोध कराते हैं। 5
उपधि के प्रकार
जैन आगमों में उपधि दो प्रकार की बतायी गयी है
1. ओघ उपधि जो प्रतिदिन उपयोग में आती है और जिसे समीप में रखा जाता है जैसे रजोहरण, मुखवस्त्रिका, आसन आदि ओघ उपधि है।
2. औपग्रहिक उपधि - जो प्रयोजन विशेष से ग्रहण की जाती हैं जैसे पाट, पट्टे आदि औपग्रहिक उपधि है। "
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औधिक एवं औपग्रहिक दोनों प्रकार की उपधि गणना परिमाण और मान परिमाण की अपेक्षा से दो-दो प्रकार की कही गई हैं। 1. गणना परिमाण - एक दो आदि संख्या से होने वाला परिमाण गणना परिमाण है। 2. मान परिमाणलम्बाई- गोलाई आदि के आधार पर किया जाने वाला परिमाण मान परिमाण कहलाता है।”
औधिक उपधि की संख्या
आगमिक टीकाओं में जिनकल्पी मुनि के लिए बारह प्रकार की, स्थविरकल्पी मुनि के लिए चौदह प्रकार की और साध्वियों के लिए पच्चीस प्रकार की औधिक उपधि कही गई है। निर्दिष्ट संख्या से अधिक उपधि रखना औपग्रहिक उपधि है।
जिनकल्पी मुनि की उपधि- जिनकल्पी मुनि बारह प्रकार की गणना परिमाण वाली ओघ उपधि रख सकते हैं
1. पात्र 2. पात्रबन्ध-पात्र बांधने का वस्त्र खण्ड (झोली) 3. पात्रस्थापनपात्र रखने के लिए ऊनी वस्त्र का टुकड़ा (नीचे का गुच्छा) 4. पात्रकेसरिका– पात्र प्रतिलेखन का साधन (पूंजणी) 5. पडला - भिक्षार्थ गमन करते समय पात्र के ऊपर ढँका जाने वाला वस्त्र खण्ड 6. रजस्त्राण- पात्र को लपेटने का वस्त्र खण्ड 6. गोच्छक— पात्र के ऊपर बांधा जाने वाला ऊनी वस्त्र का टुकड़ा (ऊपर का गुच्छा), इस प्रकार पात्र सम्बन्धी सात उपकरण । 8-10. तीन वस्त्र • ऊनी कंबली - अकाल वेला में उपाश्रय से बाहर जाते समय ओढ़ने में उपयोगी