________________
अध्याय-5
उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन
चारित्र धर्म की आवश्यक क्रियाओं को सम्पन्न करने एवं संयम यात्रा में गतिशील रहने के लिए कुछ विशेष संसाधनों की आवश्यकता होती है। दिगम्बर मुनि साधारणत: निष्परिग्रही होते हैं किन्तु कमण्डल, मोरपिच्छी, शास्त्र आदि कुछ साधन उनके द्वारा भी स्वीकृत हैं। वस्त्र, कंबली आदि उपधि कहलाते हैं और जो साधन शारीरिक क्रियाओं हेतु उपयोगी बनते हैं जैसे पात्र, रजोहरण, आसन आदि उपकरण कहलाते हैं। बोलचाल की भाषा में भी पात्र, रजोहरण, आसन आदि के साथ उपकरण शब्द का ही प्रयोग होता है और वस्त्र आदि के साथ उपधि शब्द प्रयुक्त होता है। 'वस्त्रोपकरण' ऐसे शब्द का प्रयोग नहीं होता है। यहाँ 'वस्त्र-उपधि' ऐसा प्रयोग ही रूढ़ है। स्वरूपतः धर्म साधना में उपयोगी वस्त्र-कंबली आदि उपधि एवं पात्र-रजोहरण आदि उपकरण कहे जाते हैं। उपधि एवं उपकरण शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ ___ 'उपधि' इस शब्द में 'उप्' उपसर्ग समीपार्थक और 'धा' धातु धारण करने के अर्थ में है। इसका स्पष्टार्थ है कि जो सदैव समीप में धारण किया जाता है वह उपधि है। इसका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है - जो सम्यक् प्रकार से धारण की जाती है, संगृहीत की जाती है, वह उपधि है।' ओघनियुक्ति टीका के अनुसार जो संयम के धारण-पोषण में सहयोगी हो, वह उपधि है।2।
'उपकरण' शब्द उप्-उपसर्ग, कृ-धातु और ल्युट्-प्रत्यय से निष्पन्न है। इसका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है - जिसके द्वारा विशेष क्रिया की जाती है वह उपकरण है।
प्राकृत-हिन्दी कोश के अनुसार सामग्री, साधन या साधन की वस्तु उपकरण कही जाती है।
सामान्यतया जिन साधनों के द्वारा धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न किये जाते हैं, वे उपधि या उपकरण कहलाते हैं।