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82...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
इसका निरूपण सामुदायिक जीवन की व्यवस्था की अपेक्षा से ही किया गया है। इच्छाकार के द्वारा दूसरों की इच्छा का ज्ञान करने से किसी का कार्य करने या करवाने पर मन में उनके प्रति सद्भावनाएँ उत्पन्न होती हैं तथा मन से किए गए कार्य का प्रतिफल भी शीघ्र प्राप्त होता है। स्वकृत दोषों का पश्चाताप करने से जागृति बढ़ती है तथा पुनः गलती होने की संभावनाएँ भी कम होती हैं। बड़ों की आज्ञा मानने से या उनकी बात का समर्थन करने से विनय गुण पुष्ट होता है तथा सामुदायिक जीवन में परस्पर स्नेह एवं सहयोग भाव में वृद्धि होती है। आवश्यकी सामाचारी के पालन द्वारा कार्यालय आदि में इधर-उधर होने से लोगों के मन में विभ्रम उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार नैषेधिकी सामाचारी के माध्यम से चित्त को किसी भी कार्य में एकाग्र किया जा सकता है, जिससे कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। आपृच्छना एवं प्रतिपृच्छना सामाचारी के द्वारा अनुशासन आदि का पालन होता है और उससे स्वच्छन्द वृत्ति का निरसन हो जाता है। छन्दना एवं निमंत्रणा के द्वारा अतिथि सत्कार, आपसी सामंजस्य एवं सहयोग वृत्ति में वृद्धि होती है। उपसंपदा के द्वारा ज्ञान का आदान-प्रदान सम्यक् प्रकार से हो सकता है। इस प्रकार प्रबन्धन के क्षेत्र में दस सामाचारी के द्वारा आपसी सामंजस्य एवं मधुर सम्बन्ध स्थापित होता है।
आधुनिक समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में यदि दशविध सामाचारी का चिन्तन किया जाए तो इसके द्वारा बढ़ती स्वच्छन्द वृत्ति, कार्यालयों, पाठशालाओं आदि में बढ़ती अव्यवस्था, घटता अनुशासन, आपसी कटुता आदि को नियन्त्रित किया जा सकता है। गुरु-शिष्य सम्बन्धों के बिगड़ते स्वरूप को सुधारा जा सकता है। कर्तव्यों के प्रति बढ़ती लापरवाही एवं सम्बन्धों में बढ़ती औपचारिकता को तथा स्वार्थवृत्ति को भी इसके द्वारा कम किया जा सकता है।
इक्कीस शबल दोष शबल का अर्थ है-कर्बुरा रंग वाला।
जिन कार्यों को करने से चारित्र की निर्मलता नष्ट हो जाती है वे शबल दोष कहलाते हैं।17
निम्नोक्त इक्कीस प्रकार की प्रवृत्तियों से शबल दोष लगता है।18
1. हस्तकर्म-स्त्रीवेद के प्रबल उदय से हस्त मर्दन द्वारा वीर्य का नाश करना हस्तकर्म है।