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________________ 78... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन विवरण इस प्रकार है10 1. इच्छाकार-'अगर आपकी इच्छा हो तो मैं अमुक कार्य करूँ या आप चाहें तो मैं आपका यह कार्य कर दूँ?' इस प्रकार पूछकर प्रत्येक काम करना इच्छाकार है। लाभ-पूज्यजनों की इच्छापूर्वक कार्य करने या करवाने से पारस्परिक सद्भावनाएँ पनपती हैं। जिनाज्ञा का पालन करने से पराधीनताजनक कर्मों का क्षय होता है, उच्चगोत्र कर्म का बन्ध होता है और जैनशासन के प्रति लोगों का सम्मान बढ़ता है।11 2. मिथ्याकार- संयम धर्म का पालन करते हुए कोई छोटी-बड़ी गलती हो गई हो तो ‘यह गलत है' ऐसा जानकर पश्चात्ताप पूर्वक 'मिच्छामि दुक्कड' देना मिथ्याकार है। लाभ - मिथ्या दुष्कृत देने से पापों के प्रति जागृति बढ़ती है। 3. तथाकार-सूत्रादि आगम के विषय में गुरु से कुछ पूछने पर जब उत्तर दें तब या सूत्र की वाचना सुनते समय, आचार सम्बन्धी उपदेश के समय और सूत्रार्थ के व्याख्यान के समय गुरु के सामने 'तहत्ति' (आप जो कहते हैं वही ठीक है) शब्द कहना तथाकार सामाचारी है। लाभ- इस सामाचारी का पालन करने से विनय धर्म की उत्पत्ति होती है, गुरु का बहुमान होता है, हठाग्रह वृत्ति छूटती है और गम्भीरता एवं विचारशीलता पनपती है। 4. आवश्यकी - आवश्यक कार्य (ज्ञानार्जन, भिक्षाटन या स्थंडिल गमनादि) के लिए उपाश्रय से बाहर निकलते समय 'आवस्सही' (आवश्यक कार्य हेतु बाहर जा रहा हूँ) शब्द कहना आवश्यकी सामाचारी है। लाभ-इससे साधु का अनावश्यक बाहर जाना रुकता है, अनावश्यक प्रवृत्ति का भी निरोध हो जाता है और निष्प्रयोजन गमनागमन पर नियन्त्रण का अभ्यास होता है। 5. नैषेधिकी - जिस प्रकार ज्ञानादि कार्य के लिए वसति से बाहर निकलते समय आवश्यकी सामाचारी है उसी प्रकार देव गुरु के स्थान में प्रवेश करते समय निषीधिका सामाचारी है यानी देव- गुरु के अवग्रह में प्रवेश करते समय अशुभ व्यापार के त्याग सूचक 'निसीहि' शब्द बोलना नैषेधिकी सामाचारी है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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