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श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष... 45
सकता है। इसी प्रकार वस्त्र, पात्र एवं शय्या के कारण भी आज कई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। बढ़ती इच्छाओं के कारण उनके उत्पादन की वृद्धि हेतु प्रकृति का अतिदोहन हो रहा है, पिण्ड विशुद्धि इन पर नियन्त्रण करवा सकती है। पाँच समिति पालन के द्वारा प्रत्येक कार्य में जागरूकता एवं सावधानी की वृद्धि होती है। इससे बढ़ती दुर्घटनाओं, वचनयुद्ध, कचरे की समस्या (Garbage Problem) आदि का समाधान प्राप्त हो सकता है। बारह भावनाओं का चिन्तन सामाजिक विद्वेष एवं प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर सकता है। बारह प्रतिमा की साधना के द्वारा मानसिक एवं सांकल्पिक मनोबल को मजबूत किया जा सकता है । पाँच प्रकार की इन्द्रियों का निग्रह करके इन्द्रिय अनियन्त्रण के कारण उत्पन्न होने वाली कई समस्याएँ जैसे - इन्द्रिय चंचलता, कामुकता आदि का निराकरण संभव है। पच्चीस प्रकार की प्रतिलेखना के द्वारा हड़बड़ी एवं लापरवाही के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान प्राप्त हो सकता है। मन, वचन एवं काया के विषयों एवं चंचलता को समाप्त करने का मार्ग जहाँ गुप्ति साधना से मिल सकता है वहीं चार प्रकार के अभिग्रह के द्वारा विषम परिस्थितियों में उत्पन्न होती आकुलता-व्याकुलता को शान्त किया जा सकता है। जैन श्रमण की अहोरात्र चर्या विधि
आगम सम्मत परम्परा के अनुसार उत्तराध्ययनसूत्र में मुनि की दिवस सम्बन्धी सामाचारी का वर्णन करते हुए कहा गया है कि दिन के चार भाग किए जाएं। उसमें मुनि प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान, तीसरे प्रहर में भिक्षाचरी और चौथे प्रहर में पुनः स्वाध्याय करें | 159
इन प्रहरों के अन्तर्गत भी आवश्यक क्रियाओं का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि दिन के प्रथम प्रहर के प्रारम्भिक चतुर्थ भाग में उपकरणों की प्रतिलेखना करें। फिर पौन पौरुषी बीतने तक स्वाध्याय करें। उसके पश्चात पात्रों की प्रतिलेखना करें।
इसी क्रम में दिन के चौथे प्रहर के प्रारम्भ में पात्रादि की प्रतिलेखना कर उन्हें बांधकर रख दें, फिर स्वाध्याय करें। उसके पश्चात चौथे प्रहर के चतुर्थ भाग में स्थण्डिल भूमि, शय्या भूमि आदि की प्रतिलेखना कर दैवसिक प्रतिक्रमण करें | 160
उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिक्रमण विधि छह आवश्यक तक ही उपदिष्ट की
गई है। 161