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नन्दिरचना विधि का मौलिक अनुसंधान... 27 समवसरण की रचना के समान और तचिह्नों से युक्त होता है। इसके तीसरे गढ़ पर चौमुखी प्रतिमा विराजमान करते हैं और इसे ही नन्दिरचना कहते हैं। नन्दीरचना का अधिकारी कौन ?
विधिमार्गप्रपा के संकेतानुसार इस कृत्य का अधिकारी आचार्य और मार्गानुसारी गुणों से युक्त सद्गृहस्थ है। यह रचना आचार्य या गीतार्थ मुनि एवं योग्य श्रावक के द्वारा सम्पादित की जाती है। इस रचना विधि में कुछ कृत्य आचार्य द्वारा और कुछ चयनित श्रावक द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं। जैसे कि आह्वानादि के मन्त्रोच्चारण आचार्य या अधिकार प्राप्त मुनि करते हैं और जिनप्रतिमा स्थापन, भूमिशुद्धि, जल-छिड़काव, नैवेद्यादि अर्पण की क्रिया श्रावक द्वारा की जाती है। नन्दीरचना के लिए शुभमुहूर्त का विचार
प्राचीन परम्परानुसार किसी भी व्रत, तप या श्रुतादि ग्रहण के प्रसंग पर नन्दिरचना की जाती है। यहाँ मुहूर्त के सम्बन्ध में यह निर्देश है कि नन्दिरचना जिस व्रत आदि के उद्देश्य से की जा रही है उसके लिए जो मुहूर्त निश्चित किया गया है, वही नन्दिरचना के लिए भी उचित समझना चाहिए, क्योंकि नन्दी और व्रतादि ग्रहण की विधि प्राय: अनुक्रमपूर्वक एक साथ होती है। नन्दीरचना के लिए आवश्यक सामग्री
नन्दीरचना में जो सामग्री इस्तेमाल होती है वह इस प्रकार है
• त्रिगड़ा . चन्दोवा पठिया- त्रिगड़े के पीछे एवं ऊपर की ओर बांधा जाने वाला मांगलिक वस्त्र • पंचधातु की चौमुखी प्रतिमा या अलग-अलग चार प्रतिमाएँ। • जिनमन्दिर से दीक्षामण्डप तक प्रतिमाएं लाने हेतु थालियाँ। • एक बाल्टी शुद्ध जल • भूमि एवं वातावरण की शुद्धि हेतु छिड़काव करने के लिए सुगन्धित द्रव्य विशेष। • सवा पांच किलो चावल, दो किलो चावल अलग से। • पाँच नारियल • सवा पांच किलो गुड़। • पाँच स्वस्तिक पर चढ़ाने के लिए सवा पाँच-सवा पाँच रुपये रोकड़। • चार अखण्ड दीपक। • घृत • काँच की गिलास या मिट्टी के दस छोटे दीपक। • प्रतिमा को आच्छादित करने हेतु अंगलूहणा एक या चार। • स्वस्तिक बनाने हेतु पाँच छोटे पट्टे। . चार धूपदानी। • शुद्ध जल से भरा कलश। • घिसी हुई केसर एक कटोरी। • अष्टप्रकारी पूजा