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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 255 चारित्र स्वीकार नहीं करते हैं। अत: उनके लिए आवश्यकादि सूत्रों को योगपूर्वक पढ़ने का प्रश्न ही नहीं उठता है। इसमें यह भी उल्लेख है कि अजितनाथ प्रभु से लेकर पार्श्वनाथ प्रभु तक बीच के बाईस तीर्थङ्करों के साधु-साध्वी के लिए भी उपस्थापना हेतु षडावश्यक सूत्रों का विधिपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक नहीं है। इसके अतिरिक्त प्रथम एवं अन्तिम तीर्थङ्कर के साधु-साध्वी को मण्डली प्रवेश के पूर्व आवश्यकसूत्र एवं दशवैकालिकसूत्र का योगोद्वहन करना चाहिए। __यदि उक्त कथन पर समीक्षात्मक दृष्टिकोण से विचार किया जाये तो उन साधुओं की ऋजुप्राज्ञ भूमिका को देखते हुए ग्रन्थकार का मन्तव्य समीचीन लगता है। चूंकि बाईस तीर्थङ्कर के साधु-साध्वी ऋजुप्राज्ञ (सरल एवं बुद्धिमान) होने से किसी भी स्थिति को शीघ्र समझ लेते हैं अत: उन्हें पुन:-पुनः कहने या अभ्यास की जरूरत नहीं रहती। इसी कारण उनके लिए दैनिक प्रतिक्रमण का भी. विधान नहीं है। पूर्वोक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि चरम तीर्थाधिपति भगवान महावीर के साधु-साध्वियों के लिए पंचमहाव्रत स्वीकार करने से पूर्व आवश्यकसूत्रादि के योगोद्वहन करना अत्यावश्यक है। यहाँ यह जान लेना भी जरूरी है कि भगवान महावीर के शासन में भी आर्य शय्यम्भव के द्वारा की गयी दशवैकालिकसूत्र की रचना के पूर्व तक उपस्थापना हेतु आचारांग के प्रथम अध्ययन का ज्ञान आवश्यक माना जाता था। उपस्थापना विधान के माध्यम से साधु में साधुत्व गुण का आरोपण किया जाता है। एक अभ्यासी या learning साधु की मुनि जीवन में प्रवेश करने का License मिल जाता है। इसी कारण इसे मुनि जीवन का महत्त्वपूर्ण विधान माना गया है। प्रस्तुत अध्याय में मुनि जीवन के व्रतों की चर्चा करते हुए जनमानस को उससे परिचित करवाने का प्रयास किया है। सन्दर्भ सूची 1. पाइयसद्दमहण्णवो, पृ. 1745 2. उपस्थाप्यन्ते व्रतान्यारोप्यन्ते यस्यां सा उपस्थापना । अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 2, पृ. 911 3. चारित्र विशेषे, धर्मसंग्रह, दूसरा अधिकार 4. व्रतेषु स्थापनायाम् उपस्थापना। अभिधानराजेन्द्रकोश, भा.2, पृ. 911
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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