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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 241 वि अन्नं न समणुजाणामि जावज्जीवाए ......... (शेष पूर्ववत), छठे भंते! वए उवट्ठिओमि सव्वाओ राइभोअणाओ वेरमणं।'
वास अभिमन्त्रण एवं वास निक्षेपण - पंचमहाव्रतों का आरोपण करने के पश्चात गुरु वास एवं अक्षत को अभिमन्त्रित करें। फिर जिनबिम्ब के चरणों में वास का क्षेपण करें। तत्पश्चात अभिमन्त्रित वास-अक्षत सकल संघ को प्रदान करें।
सप्त खमासमण एवं प्रवेदन - तदनन्तर पूर्ववत सप्त खमासमण-विधि सम्पन्न करें। प्रथम खमासमणसूत्र के द्वारा पंचमहाव्रत सह रात्रिभोजनविरमण व्रत को आरोपित करने की पुष्टि हेतु निवेदन करें। दूसरा खमासमण देकर गुरु द्वारा आरोपित पंचमहाव्रतादि को अन्यों से निवेदन करने की रीति पूछे। तीसरे खमासमणसूत्र के द्वारा 'मुझ पर पंचमहाव्रतादि का आरोपण इच्छापूर्वक किया गया है ?' इस विषय का निर्णय करें। इसके अनन्तर गुरु-शिष्य के मस्तक पर वासचूर्ण डालते हुए 'मैंने इच्छापूर्वक तुम में पंचमहाव्रतादि का आरोपण किया है' ऐसा तीन बार कहें। इसके साथ ही 'पूर्वाचार्यों के द्वारा कथित सूत्र, अर्थ एवं सूत्रार्थ के द्वारा पंचमहाव्रतादि को सम्यक् प्रकार से धारण करना, इनका चिरकाल तक पालन करना, संसार सागर से पार पहुँचना और गुरु गुणों का अनुसरण करते हुए मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ना' यह आशीर्वाद प्रदान करें।
चौथे खमासमण के द्वारा ‘मैंने पंचमहाव्रतादि स्वीकार किये हैं' ऐसा श्रमण समुदाय को सूचित करने की अनुमति प्राप्त करे।
पांचवाँ खमासमण देकर सकल संघ को सूचित करने हेतु नमस्कारमन्त्र का उच्चारण करते हुए समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। प्रदक्षिणा के समय उपस्थित सकल संघ उपस्थापनाग्राही मुनि के ऊपर वास-अक्षत उछालते हुए तीन बार बधायें।
छट्ठा खमासमण देकर महाव्रतादि स्वीकार किये जाने के निमित्त कायोत्सर्ग करने की अनुज्ञा प्राप्त करें। सातवाँ खमासमण देकर पंचमहाव्रतादि आरोपण निमित्त सत्ताईस श्वासोच्छ्वास (सागरवरगंभीरा तक लोगस्ससूत्र) का कायोत्सर्ग करें।
तदनन्तर एक खमासमणसूत्र के द्वारा पंचमहाव्रतादि में स्थिर होने के लिए कायोत्सर्ग करवाने का निवेदन करें। गुरु अन्नत्थसूत्र पूर्वक (सागरवरगम्भीरा तक) लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करवायें।