________________
234... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता
के भक्ष्य की खोज में होते हैं।
शरीरशास्त्रियों का कहना है कि सूर्य अस्त होने पर अपने शरीर में रही हुई ऊर्जा शक्ति कम हो जाती है। ऊर्जा शक्ति की हानि होने से रात्रि में किया गया भोजन किस तरह शक्तिवर्धक हो सकता है ?
खुद
लौकिक व्यवहार में देखते हैं कि कोई निपुण जौहरी हीरा खरीदता है तो वह उसका परीक्षण दिन के प्राकृतिक प्रकाश में करता है, रात्रि के प्रकाश में नहीं। यह भी अनुभव करते हैं कि लाख पावरवाला बल्ब रहने पर भी कमल सूर्यास्त के बाद विकसित नहीं होता। उसे विकसित करने की ताकत तो सिर्फ सूर्य में ही है। उसी प्रकार शरीर मन एवं आत्मा को स्वस्थ रखने की ताकत दिवसकालीन भोजन में ही है।
ऐसा पढ़ा जाता है कि मांसाहारी पशु दिन को आराम करते हैं और रात को आहार की खोज में घूमते हैं। यदि कोई ऐसा कहे कि आजकल शाकाहारी पशु भी रात को खाते हैं तो यह कहना ठीक नहीं है। कदाचित देश कालगत दुष्प्रभाव से यह संभव हो सकता है, अन्यथा असंभव है।
जंगल में रहने वाले गाय, हिरण आदि पशु भी रात्रिभोजन करते हों ऐसा कहीं भी देखा-सुना नहीं गया है। यदि कोई ऐसा कहे कि रात में नहीं खाने से दूसरे दिन तक 14-15 घंटे का अंतर हो जाता है। जबकि सुबह और शाम के भोजन के बीच बहुत अंतर नहीं है। इस कारण रात्रिभोजन का त्याग वैज्ञानिक ढंग वाला नहीं है तो वह सत्य बात से अज्ञात है। सुबह में खाने के बाद जितना परिश्रम किया जाता है उससे बहुत कम परिश्रम रात में खाने के बाद किया जाता है। अतः रात्रिभोजन करना महापाप है।
जैन रामायण की एक छोटी सी घटना इस बात का समर्थन करती है । वह इस प्रकार है कि राम-लक्ष्मण ने वनवास स्वीकार करके वनगमन किया। महासती सीता भी उनके साथ थी। वे दक्षिण में भ्रमण करते-करते कुबेर नगरी में पहुँचे। वहाँ के राजा ने उन सबका आदर-सत्कार किया और अपनी पुत्री वनमाला का विवाह लक्ष्मण के साथ किया। फिर लक्ष्मण राम के साथ आगे बढ़े और वनमाला को पिता के घर ही रहना पड़ा। तब वनमाला ने लक्ष्मण को वापस लौटने की कसम खाने के लिये कहा। तब लक्ष्मण ने प्रण लिया- 'यदि रामचन्दजी को उनके इष्ट स्थान पर छोड़कर वापस न लौटूं तो मुझे पाँच पापों के सेवन का पाप लगे और ऐसे पापी की जो गति होती है, वह गति मेरी हो'