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मण्डली तप विधि की तात्त्विक विमर्शना... 137 अन्नत्थसूत्र कहकर एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करें। फिर पूर्णकर पुन: नवकार मन्त्र बोलें। शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भगवन् सुत्त मण्डली तवं निक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह? गुरु - वंदावेमो। शिष्य - इच्छं शिष्य - वासक्षेपं करावेह। गुरु - करावेमो। शिष्य - इच्छं।
फिर पूर्ववत चैत्यवन्दन से लेकर गुरुवंदन तक सम्पूर्ण विधि करें।
खमासमण विधि- सर्वप्रथम पूर्ववत दो खमासमण के द्वारा स्वाध्याय करने की अनुज्ञा लें। फिर दो खमासमण द्वारा आसन पर बैठने की अनुमति लें। फिर दो खमासमण पूर्वक पांगरणो-कंबली आदि ओढ़ने का आदेश लें।
अन्त में यह विधि करते हुए अविधि आशातना लगी हो, उसका मिच्छामि दुक्कडं दें। ___ उपर्युक्त विधियाँ सूत्र मण्डली की अपेक्षा कही गयी हैं। ये विधियाँ मण्डली योग के प्रथम दिन की जाती हैं। अन्य दिनों में छ: मण्डली के निमित्त उस-उस मण्डली का नाम लेकर पूर्वोक्त विधियाँ ही करते हैं। तुलनात्मक विवेचन
जब हम मण्डली प्रवेश तप विधि के सम्बन्ध में तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो इसका प्राचीन और अर्वाचीन उभय स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। यदि प्राचीनता की दृष्टि से अवलोकन किया जाए तो आगम एवं आगमिक टीकासाहित्य में लगभग मण्डली-विधि की चर्चा प्राप्त नहीं होती है। इससे अनुमानित होता है कि यह तप-विधि आगमेतर कालीन है।
इस विधि का सर्वप्रथम उल्लेख पंचवस्तुक में प्राप्त होता है, किन्तु उसमें मण्डली प्रवेश हेतु सात आयंबिल करने मात्र का ही निर्देश है। वे सात आयंबिल किस मण्डली के निमित्त किये जाने चाहिए एवं उसकी विधि क्या है? इसका कोई वर्णन नहीं है। इसके पश्चात सात मण्डली के नाम सर्वप्रथम प्रवचनसारोद्धार में उपलब्ध होते हैं। इसके अनन्तर सप्त मण्डली के नाम क्रमश: तिलकाचार्य सामाचारी, सुबोधासामाचारी, सामाचारी प्रकरण, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर आदि ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं किन्तु मण्डली प्रवेश किस विधि पूर्वक किया जाना चाहिए, इसका वर्णन अप्राप्त है। परवर्ती मौलिक ग्रन्थों में भी इसकी चर्चा लगभग नहीं है, परन्तु सामाचारी प्रधान संकलित ग्रन्थों में इस विधि का उल्लेख अवश्य है और वह निःसन्देह