________________
प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 121
19. पंचवस्तुक, 51 20. वही, 73 21. (क) निशीथभाष्य, 3542-3546 की चूर्णि
(ख) प्रवचनसारोद्धार, अनु. हेमप्रभाश्री, पृ. 107 22. धर्मसंग्रह, अनु. श्री पद्मविजयगणि, भा.3, पृ. 9 23. निशीथभाष्य, गा. 3625, 3631-33 24. गुम्विणि बालवच्छा य, पव्वावेउं ण कप्पती।
(क) निशीथभाष्य, भा. 2, गा. 3508
(ख) प्रवचनसारोद्धार, 108/792 25. पंडए वातिए कीवे, कुंभी इस्सालुए त्ति या
सउणी तक्कम्मसेवी य, पक्खियापक्खित्ते ति य।। सोगंधिए य आसित्ते, वद्धिए चिप्पिते ति या मंतोसही उवहते, इसिसत्ते देवसत्ते य॥
(क) निशीथभाष्य, गा. 3561-62
(ख) प्रवचनसारोद्धार, 109/793-94 26. प्रवचनसारोद्धार, 109/793-794 27. निशीथभाष्य, 3602-3604 28. प्रवचनसारोद्धार, 110/795-96. 29. सुदेशकुलजात्यङ्गे, ब्राह्मणे क्षत्रिये विशि। निष्कलंके क्षमे स्थाप्या, जिनमुद्रार्चिता सताम्॥
अनगारधर्मामृत, 9/88 की टीका 30. विशुद्धकुलगोत्रस्य, सद्वृत्तस्य वपुष्मतः। दीक्षायोग्यत्वमाम्नातं, सुमुखस्य सुमेधसः।।
आदिपुराण, 39/158 31. वही, 74/493 32. न भिक्खवे, हत्थच्छिन्नो वब्बाजेतब्बो .....
अन्धमूगबधिरो पव्वाजेतव्वो।। (क) विनयपिटक- (विनयसंग्रह- अट्ठकथा) भदन्तसारिपुत्र, पृ. 135
(ख) विनयपिटक- राहुलसांकृत्यायन, पृ. 122-123 33. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 10/15 34. स्थानांग अभयदेवटीका, पत्र 449 35. स्थानांगसूत्र, 3/180