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प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 111 जाती है। वर्तमान में आज्ञा ग्रहण इसलिए भी आवश्यक हो सकता है कि यह युग सामाजिक युग है, अत: इसे लेकर कोई सामाजिक विवाद उत्पन्न न हो। इससे दीक्षार्थी की पूर्ण जानकारी भी मिल जाती है।
मुखवस्त्रिका का धारण अनामिका पर क्यों? पंच महाव्रत स्वीकार करते समय मुखवस्त्रिका को इस प्रकार धारण किया जाता है कि अनामिका को छोड़कर शेष अंगलियाँ बाहर की तरफ, अनामिका अन्दर की तरफ हाथीदाँत की भांति निकली हुई और उसी के आधार पर मुहपत्ति ग्रहण की जाती है तथा हाथों को ऊपर की तरफ रखा जाता है। इस विधि के अन्तर्भूत रहस्य निम्न हो सकते हैं- जिस तरह उन्नत मुद्रा से व्रतादि ग्रहण किये जा रहे हैं वैसे ही उत्कर्ष भाव व्रत पालन में भी सदैव रहें।
जिस प्रकार हाथी के दाँत एक बार निकलने के बाद अन्दर नहीं जाते वैसे ही सांसारिक रिश्तों का त्याग करने के बाद पुन: संसार के भावों में नहीं मुड़ें और संयम के प्रति हमेशा तटस्थ रहें।
अनामिका का सम्बन्ध सीधा हृदय से है तथा इसे पवित्र भी माना गया है, इसलिए परमात्मा की पूजा के लिए भी इसी अंगुली का प्रयोग किया जाता है। शेष अंगुलियाँ तो न्यून कार्यों के लिए उपयोग की जाती हैं जैसे कनिष्ठिका लघुशंका के लिए, मध्यमा और तर्जनी मिलकर बड़ी शंका के लिए, तर्जनी किसी की तरफ इशारा करने के लिए तथा अंगूठा दिखाना ठगने का प्रतीक है, परन्तु अनामिका का ऐसा कोई प्रयोजन नहीं है। अनामिका से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगें कार्य सिद्धि में विशेष प्रभावशाली हैं। ___ इस प्रकार मुखवस्त्रिका को अनामिका के आधार पर धारण करने के उक्त प्रयोजन मालूम होते हैं। तुलनात्मक अध्ययन
यदि प्रस्तुत दीक्षा विधि का तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो निःसन्देह अनेक पहलुओं का स्पष्ट बोध हो जाता है।
यहाँ मननीय है कि दीक्षा विधि से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ हैं, किन्तु वर्तमान प्रचलित परम्परा एवं प्रामाणिकता को ख्याल में रखते हुए हमने विधिमार्गप्रपा में वर्णित दीक्षा विधि को मुख्य आधार बनाया है। वर्तमान सामाचारी में अधिकांश विधि-विधान इसी ग्रन्थ के अनुसार किए-करवाए जाते हैं।