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54...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... करके शुभ संस्कारों एवं पावनता के साथ श्रमणत्व के पथ का अवगाहन करता है।
सूत्रकृतांग सूत्र में कहा गया है कि जैसे कोई व्यक्ति छिद्र वाली नौका पर चढ़कर पार जाने की इच्छा करता है तो वह सागर के पार नहीं पहुँच सकता, बल्कि बीच में ही डूब जाता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति बिना छिद्र वाली नौका पर चढ़कर समुद्र से पार जाना चाहता है, वह समुद्र को पार कर किनारे पहुँच जाता है। ठीक इसी प्रकार जो व्यक्ति राग-द्वेष, कषाय, कर्मबन्धन आदि के कारणों को दूर करके मुक्ति की प्राप्ति के लिए बिना छिद्र वाली संयमरूपी नौका पर चढ़कर सिद्धालय में गमन की इच्छा करता है वही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। किन्तु जो संसार में रहकर निरन्तर आश्रव-परिग्रहरूपी छिद्र युक्त नौका से पार जाने की चेष्टा करता है वह भवाब्धि में ही डूब जाता है। इसलिए परमात्म तत्त्व की उपलब्धि दीक्षा से ही सम्भव है। इस प्रकार अनेक दृष्टियों से दीक्षा स्वीकार की आवश्यकता और सार्थकता परिलक्षित होती है। प्रव्रज्या के प्रकार
स्थानांगसूत्र में प्रव्रज्या को कृषि एवं धान्य की उपमा देते हुए उसके चार प्रकार बतलाये हैं।11 जैसे कृषि चार प्रकार की होती है - 1. एक बार वपन की गयी कृषि 2. उगे हुए धान्य को उखाड़कर रोपण की जाने वाली कृषि 3. भूमि को घास रहित कर तैयार की जाने वाली कृषि 4. भूमि को अनेक बार घास रहित करने पर होने वाली कृषि। इसी तरह प्रव्रज्या भी चार प्रकार की होती है - 1. सामायिक चारित्र में आरोपित करना (छोटी दीक्षा) 2. महाव्रतों में संस्थापित करना (बड़ी दीक्षा) 3. एक बार की गई आलोचना द्वारा दी जाने वाली दीक्षा 4. अनेक बार की गई आलोचना द्वारा दी जाने वाली दीक्षा।
धान्य की भाँति भी प्रव्रज्या चार प्रकार की होती है1. खलिहान में स्वच्छ करके रखे गये धान्यपुंज के समान निर्दोष प्रव्रज्या। 2. स्वच्छ, किन्तु खलिहान में विकीर्ण धान्य के समान अल्प अतिचार वाली - प्रव्रज्या। 3. खलिहान में बैलों आदि के द्वारा कुचले गये धान्य के समान बहु
अतिचार वाली प्रव्रज्या। 4. खेत से काटकर खलिहान में लाये गये धान्य फूलों के समान बहुतर
अतिचार वाली प्रव्रज्या।