________________
18... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
संयम, ज्ञान, सत्य, शौच, दया आदि सभी गुण नष्ट हो जाते हैं।38 इसके सेवन से पाचन संस्थान कमजोर होता है। मन, मस्तिष्क और बुद्धि का विनाश होता है। इस व्यसन का सेवन करने पर आर्थिक, धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं नैतिक दृष्टि से भी स्तर गिर जाता है।
आचार्य हरिभद्रसूरि ने मद्यपानसेवी व्यक्ति में उत्पन्न होने वाले सोलह दोषों का उल्लेख किया है जो निम्न हैं- 1. शरीर का विद्रूप होना 2. शरीर का विविध रोगों का आश्रय स्थल होना 3. परिवार से तिरस्कृत होना 4. समय पर कार्य करने की क्षमता नहीं रहना 5. अन्तर्मानस में द्वेष पैदा होना 6. ज्ञान - तन्तुओं का धुंधला हो जाना 7. स्मृति नष्ट होना 8. बुद्धि भ्रष्ट होना 9. सज्जनों से सम्पर्क न रहना 10. वाणी में कठोरता आना 11. कुसंगति होना 12. कुलहीनता 13. शक्ति ह्रास 14-16. धर्म- अर्थ - काम तीनों का नाश होना।39 महात्मागाँधी ने मदिरापान को तस्कर कृत्य और वेश्यावृत्ति से भी अधिक निन्दनीय कहा है, क्योंकि इन दोनों कुकृत्यों को पैदा करने वाला मद्यपान है। मदिरापान से होने वाली हानियों का इतिहास बहुत लम्बा - चौड़ा है।
4. वेश्यागमन - यह सर्वमान्य दुष्प्रवृत्ति है । इसे एक ऐसा दुर्व्यसन कहा गया है, जो जीवन को कुपथ की ओर अग्रसर करता है । यह जहरीले साँप की तरह है जो चमकीला, लुभावना और आकर्षक है, किन्तु बहुत ही खतरनाक है। वेश्या प्रज्वलित दीपशिखा है, जिस पर हजारों लोग शलभ की भाँति पड़-पड़ कर भस्म हो गए हैं। वह एक जलती मशाल है, जिसने हजारों परिवारों को जलाकर साफ कर दिया है।
हानि - वेश्यागामी व्यक्ति का शारीरिक, आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक, नैतिक और धार्मिक सभी दृष्टियों से शोषण होता है। वह लोगों की नजरों से गिर जाता है । मदिरापान से होने वाले सभी दोष इसके जीवन में भी प्रवेश कर जाते हैं अतः वेश्यागमन सर्वथा परिहार्य है।
5. शिकार- शिकार एक क्रूर कृत्य है। यह मानव मन की निर्दयता, कठोरता और हृदयहीनता का प्रतीक है। जैन ग्रन्थों में शिकारी को 'पापर्द्धि' कहा है। पापर्द्धि से तात्पर्य पाप द्वारा प्राप्त ऋद्धि है क्योंकि शिकारी के पास धर्म नाम की कोई चीज होती ही नहीं, वह पाप कार्य से ही अपना जीवन निर्वाह करता है।