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________________ 448... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... खमासमणविधि, व्रतग्रहणविधि आदि समस्त विधान उन-उन प्रतिमाओं के नाम-पूर्वक करने चाहिए। तपागच्छ, अचलगच्छ, पायच्छंदगच्छ आदि मूर्तिपूजक परम्पराओं में यह विधि किस रूप में की जाती है? यह कहना मुश्किल है, क्योंकि इन परम्पराओं से सम्बन्धित इस विषयक एक भी ग्रन्थ देखने में नहीं आया है। संभवत: तपागच्छ परम्परा वाले अधिकांश विधि-विधान आचारदिनकर को आधार मानकर करते रहे हैं। उस दृष्टि से कहा जा सकता है कि खरतरगच्छपरम्परानुसार जो विधि दर्शाई गई है, इस परम्परा में भी वही स्वरूप मान्य होना चाहिए। अत: कहा जा सकता है कि खरतरगच्छ और तपागच्छ-दोनों परम्पराओं में यह विधि समान है तथा अन्य परम्पराएँ लगभग तपागच्छ-सामाचारी का अनुकरण करने वाली होने से इनमें भी प्रतिमा- विधि का पूर्वोक्त स्वरूप ही समझा जाना चाहिए। स्थानक एवं तेरापंथी परम्परा उपासक-प्रतिमा की साधना विधि निश्चित रूप से स्वीकार करती हैं, किन्तु इन द्विविध आम्नाय में दशाश्रुतस्कन्ध की विधि के अतिरिक्त किसी प्रकार के अन्य विधि-विधान प्रचलित नहीं हैं, क्योंकि इन परम्पराओं की विशेष रूचि कर्मकाण्ड में नहीं है। दिगम्बर परम्परा में प्रतिमा स्वीकार करने की प्रवृत्ति सर्वाधिक रही है। इसका एक हेतु यह माना जा सकता है कि इस विषय को लेकर सबसे अधिक चर्चा दिगम्बर-ग्रन्थों में उपलब्ध है। जहाँ तक तत्सम्बन्धी विधि-विधानों का प्रश्न है, वहाँ इस विधि से सम्बन्धित कोई ग्रन्थ अवश्य होना चाहिए, परन्तु हमें अभी तक वह उपलब्ध नहीं हो पाया है और न ही कोई स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो पाई है, अत: इसके बारे में अधिक कहना मुश्किल है। फिर भी इतना सच है कि इनमें श्वेताम्बर-परम्परा की भाँति नन्दीरचना, देववन्दन, वासदान, खमासमण आदि विधि-प्रक्रियाएँ नहीं होती है। सम्भवतः भक्तिपाठ एवं निर्धारित दंडकपाठ के साथ यह विधि सम्पन्न की जाती है। ग्यारह प्रतिमाओं के प्रयोजन उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं के अनुक्रमश: ये प्रयोजन हैं• दर्शनप्रतिमा का उद्देश्य मिथ्यात्वबुद्धि से रहित और शमसंवेग आदि प्रशस्त गुणों से युक्त होना है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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