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________________ 434 ... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक तीन विभागों का वर्गीकरण सर्वप्रथम पं. आशाधरजी रचित सागारधर्मामृत की स्वोपज्ञटीका में प्राप्त होता है। वहाँ 'वर्णिनी ब्रह्मचारिणः' लिखा गया है। जिससे यही अर्थ निकलता है कि वर्णी पद ब्रह्मचारी का वाचक है, पर 'वर्णी' पद का क्या अर्थ है ? इस बात पर उन्होंने कुछ भी प्रकाश नहीं डाला है। उत्कृष्ट आदि की अपेक्षा प्रतिमाओं का स्वरूप प्रत्येक साधक की योग्यता एवं क्षमता भिन्न-भिन्न होती है। प्रत्येक व्यक्ति समान रूप से प्रतिमाओं को धारण नहीं कर सकता है, इसी अपेक्षा से प्रत्येक प्रतिमा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद रूप कही गई है ताकि सभी कोटियों के साधक प्रतिमाओं की साधना कर सकें। 1. सम्यक्त्व प्रतिमा- जो सप्तव्यसन और रात्रिभोजन का त्याग कर आठ मूलगुणों के साथ शुद्ध सम्यक्त्व धारण करता है, वह उत्कृष्ट दर्शन प्रतिमाधारी है। जो रात्रिभोजनत्याग के साथ आठ मूलगुणों को धारण करता है और सर्वव्यसनों का त्यागी नहीं है, किन्तु उनमें से कुछ व्यसनों का त्याग किया हुआ है, वह मध्यम है तथा जो चारित्रमोहनीय के तीव्र उदय से एक भी व्रत का पालन नहीं कर पाता, किन्तु व्रत धारण की भावना रखता हुआ निरतिचार सम्यग्दर्शन को धारण करता है, वह जघन्य दर्शन प्रतिमा का धारक है। 47 2. व्रत प्रतिमा- जो केवल अणुव्रतों का ही पालन करता है, वह जघन्यव्रत-प्रतिमाधारक है। जो मूलगुणों का पालन करता है, वह मध्यम है तथा जो निर्मल सम्यग्दर्शन के साथ अणुव्रतों और गुणव्रतों का निरतिचार पालन करता है, वह उत्तमव्रत - प्रतिमाधारी है। 48 3. सामायिक प्रतिमा- जो तीनों संध्याओं में निश्चित समय पर नियतकाल तक सामायिक करता है, वह उत्तम सामायिक प्रतिमाधारी है। जो अणुव्रतों और गुणव्रतों का निरतिचार पालन करते हुए भी सामायिक का निर्दोष पालन नहीं करता है, वह मध्यम है और जो अणुव्रतों एवं गुणव्रतों के साथसाथ सामायिक का पालन भी सदोषरूप से करता है, वह जघन्य सामायिकप्रतिमाधारी है। 49 4. पौषध प्रतिमा - जो प्रारंभ की तीनों प्रतिमाओं का यथाविधि पालन करते हुए प्रत्येक मास के चारों पर्वों में सोलह प्रहर का उपवास करता है और पर्व की रात्रि में प्रतिमायोग धारण कर कायोत्सर्ग करता है, वह उत्तम पौषध
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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