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उपासकप्रतिमाराधना विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ...431 11. श्रमणभूत प्रतिमा- श्रमणभूत प्रतिमा का अर्थ है-श्रमण की तरह जीवनचर्या का निर्वाह करना। इस परिभाषानुसार ग्यारहवीं प्रतिमा धारण करने वाले साधक की सम्पूर्ण चर्या श्रमण के समान होती है। उसकी वेशभूषा भी लगभग श्रमण जैसी ही होती है। वह मुनि की भाँति भिक्षाचर्या द्वारा जीवन निर्वाह करते हुए प्रतिलेखन, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग, समाधि आदि में लीन रहता है तथा सभी प्रतिमाओं का निरतिचार पालन करता है।
श्वेताम्बर परम्परा की दृष्टि से वह साधु से इस अर्थ में भिन्न होता है कि1. पूर्वराग के कारण कुटुम्बी या परिचितों के घर ही भिक्षार्थ जाता है। 2. केशलुंचन के स्थान पर मुण्डन करवा सकता है तथा 3. साधु के समान विभिन्न ग्रामों एवं नगरों में विहार नहीं करता है, अपने ही गाँव में रहता है।37 ___ दिगम्बर परम्परा में ग्यारहवीं प्रतिमा का नाम 'उद्दिष्टत्याग' है। प्रतिमा के दो विभाग किए गए हैं-1. क्षुल्लक और 2.ऐलका38
क्षुल्लक- यह दिगम्बर मुनि के आचार-नियम से निम्न बातों में भिन्न होता है-1. दो वस्त्र रखता है 2. केशलोच या मुण्डन करवाता है 3. विभिन्न घरों से भिक्षा ग्रहण करता है या फिर किसी मुनि के पीछे जाकर एक ही घर से भिक्षा ग्रहण कर लेता है 4. वह मुनियों की तरह खड़े-खड़े भोजन नहीं करता है उसके लिए आतापन-योग, वृक्षमूल-योग, आदि योगों की साधना का भी निषेध है 5. वह पाणि-पात्र में भी और कांसे के पात्र आदि में भी भोजन कर सकता है 6. वह कौपीन पहनता है।
क्षुल्लक भी दो प्रकार के होते हैं-1. एक गृहभोजी और 2. अनेक गृहभोजी। ___ अनेक गृहभोजी क्षुल्लक भिक्षावृत्ति द्वारा उदरपूर्ति करता है। गृहस्थ के घर भिक्षार्थ जाने पर प्रासुक आहार प्राप्त हो, तो ग्रहण करके वहीं भोजन कर लेता है। स्वयं के बर्तन स्वयं ही साफ करता है। भोजन के पश्चात् गुरू के समीप जाकर आगामी दिवस तक के लिए चारों आहार का त्याग करता है।
एक गृह भोजी क्षुल्लक मुनियों द्वारा आहार हेतु प्रस्थित हो जाने के पश्चात् स्वयं की भिक्षाचर्या के लिए निकलता है। वर्तमान में एक गृह भोजी क्षुल्लक ही अधिक हैं।39
ऐलक- ऐलक का अर्थ है- मात्र लंगोटी धारण करने वाला उपासक। यह