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________________ 424... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक स्वीकार कर आयु पूर्ण करता है । प्रस्तुत विषय पर गहराई से विचार करें, तो यह पक्ष भी स्पष्टत: ज्ञात होता है कि श्वेताम्बर आगम उपासकदशांगसूत्र के मूलपाठ में समय - मर्यादा का कोई विधान नहीं है, किन्तु दशाश्रुतस्कन्धसूत्र और उपासकदशासूत्र की टीकाओं में एवं उससे परवर्ती अन्य ग्रन्थों में समय का निर्धारण किया गया है। डॉ. सागरमल जैन के मतानुसार श्वेताम्बर परम्परा में इन विकासात्मक भूमिकाओं को मात्र तपविशेष मान लिया गया है, जबकि ये गृहस्थ धर्म के निम्नतम रूप से लेकर संन्यास के उच्चतम आदर्श तक पहुँचने में मध्यावधि विकास की अवस्थाएँ हैं, जिन पर साधक अपने बलाबल का विचार करके आगे बढ़ता है। ये भूमिकाएँ यही बताती हैं कि जो साधक निवृत्तिपरक संन्यासमार्ग को ग्रहण नहीं कर सकता, वह गृही जीवन में रहकर भी उस आदर्श की ओर क्रमशः कैसे आगे बढ़े ? अतः यह मानना होगा कि इन प्रतिमाओं के पीछे दिगम्बर सम्प्रदाय का जो दृष्टिकोण या उद्देश्य हैं, वह आत्ममूलक एवं वैज्ञानिक है।14 श्वेताम्बर परम्परा में आनन्द आदि श्रावकों द्वारा प्रतिमाओं को धारण करने के जो उल्लेख मिलते हैं, वे भी यह बताते हैं कि आनन्द आदि श्रावक विकास की उच्चतर अवस्थाओं तक बढ़ते गए तथा पुनः वापस नहीं लौटे। इससे और भी स्पष्ट हो जाता है कि ये प्रतिमाएँ श्रावक जीवन से श्रमण जीवन तक उत्तरोत्तर विकास की भूमिकाएँ हैं । व्यवहारतः ग्यारह प्रतिमाएँ श्रावक की ग्यारह श्रेणियाँ हैं, जिनमें एक के पश्चात् दूसरी श्रेणी पर श्रावक स्वयं को स्थिर करता हुआ आत्मिक उत्थान के सोपान पर क्रमशः बढ़ता चला जाता है। ग्यारह प्रतिमाओं का स्वरूप श्वेताम्बर एवं दिगम्बर- दोनों परम्पराओं में ग्यारह प्रतिमाओं का विवरण इस प्रकार उपलब्ध होता है 1. दर्शन प्रतिमा दर्शन का सामान्य अर्थ दृष्टि है। आध्यात्मिक विकास के लिए व्यक्ति में सम्यग्दृष्टि होना आवश्यक है। दर्शन प्रतिमा का अर्थ हैवीतरागीदेव, पंचमहाव्रतधारी गुरू और जिन धर्म पर यथार्थ श्रद्धा स्थापित करना। उपासकदशांग की अभयदेवसूरिकृत टीका में बतलाया गया है कि
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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