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416... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... 145. सप्तोपधानविधि, पृ. 9 146. प्रव्रज्यायोगादिविधिसंग्रह, पृ.174 147. वही, पृ.-177 148. सप्तोपधानविधि, पृ.-12-14 149. वही, पृ.-15 150. (क) विधिमार्गप्रपा, पृ.-8 (ख) सप्तोपधानविधि, पृ.-15-16 151. प्रव्रज्यायोगादिविधिसंग्रह, पृ.-181-82 152. (क)सप्तोपधानविधि, पृ.-5 (ख) प्रव्रज्यादिसंग्रह, पृ.-182 153. (क) विधिमार्गप्रपा, पृ.-8 (ख) वही, पृ.-182 154. सप्तोपधानविधि, पृ.-29 155. प्रव्रज्यायोगादिविधिसंग्रह, पृ.-190 156. उपधानतपक्रियादिसंग्रह, प्र.-6 157. उपधानविधि तथा पोसहविधि, पृ.-18 158. (क) उपधानतपक्रियादिसंग्रह, पृ.-5
(ख) प्रव्रज्यायोगादिविधिसंग्रह, पृ.-190 159. (क) सप्तोपधानविधि, पृ.-37
(ख) प्रव्रज्यायोगादिसंग्रह, पृ.-190-191 160. यह विधिमार्गप्रपा के अनुसार उल्लिखित है। 161. विधिमार्गप्रपा में 'उक्खेव' शब्द का प्रयोग है। प्रचलित परम्परा के अनुसार
'निक्खेव' शब्द का प्रयोग किया जाता है। सप्तोपधानविधि में 'निक्खेव'शब्द
व्यवहृत हुआ है। उक्खेव एवं निक्खेव-दोनों शब्द अर्थ की दृष्टि से समान हैं। 162. (क) विधिमार्गप्रपा, पृ.-9 (ख) सप्तोपधानविधि, पृ.-28 163. सप्तोपधानविधि, पृ.-22-23 164. विधिमार्गप्रपा में इस स्थान पर सात प्रदक्षिणा लगाने का निर्देश है, जिसका
तात्पर्य-प्रत्येक उपधान की पृथक्-पृथक् अनुज्ञा प्राप्त करना है। इसमें यह उल्लिखित है कि 'अणुजाणह' से लेकर यहाँ तक की सभी खमासमण विधियाँ पृथक्-पृथक् उपधान की अपेक्षा उन-उन सूत्रों का नाम लेकर, सात-सात बार करनी चाहिए तथा सात प्रदक्षिणा में सात गंधमुट्ठियाँ डालना चाहिए। इसमें यह भी निर्दिष्ट किया है कि कुछ परम्पराओं में अक्षतदान के अनन्तर एक साथ ही सात गंधमुट्ठियाँ दे देते हैं।