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________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...415 125. तओ इरियावहिअं अहिज्झीए। से भयवं कयराए विहीए ? गोयमा ! जहाणं पंचमंगल महासुयक्खंधा। वही, पृ.-53 126. एवं सक्कत्थयं एगट्ठमबत्तीसाए आयंबिलेहि। वही, पृ.-53 127. अरहंतत्थयं एगेणं चउत्थेणं तिहिं आयंबिलेहिं च। वही, पृ. 53 128. चउवीसत्थयं एगेणं छट्ठणं एगेणं चउत्थेणं पणवीसाएआयंबिलेहि। वही, पृ.-53 129. नाणत्थयं एगेणं चउत्थेणं पंचहिं आयंबिलेहिं इत्यादि। वही, पृ.-53 130. सप्तोपधानविधि, पृ.-1-2 131. (क) विधिमार्गप्रपा, पृ.-6 (ख) सप्तोपधानविधि, पृ.-127. (क) वही, पृ.-7 (ख) वही, पृ.-2 132. यह पाठ विधिमार्गप्रपा में नहीं है, किन्तु वर्तमान सामाचारी में बोला जाता है। विधिमार्गप्रपा, पृ.-7 133. विधिमार्गप्रपा, पृ.-7 134. सप्तोपधानविधि, पृ.-3 135. विधिमार्गप्रपा, पृ.-7 136. देववन्दनविधि अलग से कहेंगे। 137. प्रव्रज्यायोगादिसंग्रह, पृ.-175 138. विधिमार्गप्रपा आदि मध्यकालीन या इनसे पूर्ववर्ती ग्रन्थों में नन्दीश्रवणविधि नहीं कही गई है, किन्तु सप्तोपधान नामक कृति में इस विधि का उल्लेख है तथा वर्तमान में भी यह विधि प्रचलित है। 139. प्रव्रज्यायोगादिविधिसंग्रह, पृ.-175 140. (क) विधिमार्गप्रपा, पृ.-7 (ख) सप्तोपधानविधि, पृ.-8 141. (क) वही, पृ.-7 (ख) वही, पृ.-8-9 142. प्रव्रज्यायोगादिविधिसंग्रह, पृ.-177 143. (क) विधिमार्गप्रपा, पृ.7 (ख) सप्तोपधानविधि, पृ.9 144. प्रव्रज्यायोगादिविधिसंग्रह, पृ.177
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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