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412... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... 66. पंचमंगले पूर्वसेवायामुपवास: 5 ततो क्रमागतपदपइसरावणियं अंबिलं 8 उत्तरसेवायामुपवास: 31
सुबोधासामाचारी पृ.-5 67. उपधान- सुंदर स्वरूप, संपा.-पूर्णचन्द्रसागरजी, पृ.-38 68. विधिमार्गप्रपा, पृ.-9-10 69. आचारदिनकर, पृ.-53-58 70. महानिशीथ, अ.-3, पृ.-55 71. सन्मार्ग, सन्-2003, पृ.-94 72. उपधान- सुंदर स्वरूप, पृ.-42-43 73. नमस्कारे उववासपंचगाणंतरं पंचण्हं पयाणं एगा वायणा तओ
अट्ठण्हमंबिलाणमुववासतिगस्स य अंते अंतिमचूलाए पयतिगस्स सोलट्ठनवक्खर परिमाणस्स बीया वायणा पढम उवहाणं।
सुबोधासामाचारी, पृ.-5 74. उपधाननुं सुंदर स्वरूप, पृ.-49 75. महानिशीथ, अ.-3, पृ.-42-43 76. सुबोधासामाचारी, पृ.-5 77. वही, पृ.-5 78. पणिहाणगाहातिगस्स तइया दिज्जइ वायणा।
वही, पृ.-5 79. सिद्धत्थथुईए उवहाणं विणावि तिण्हं गाहाणं वायणा दिज्जइ न पुण
चरमगाहाजुयलस्स। वही, पृ.-5 80. उपधाननुं सुंदर स्वरूप, पृ.-10 81. वसे गुरूकुले णिच्चं, जोगवं उवहाणवं। पियंकरे पियंवाई, से सिक्खं लद्भुमरहई।।
उत्तराध्ययनसूत्र, 11/24 82. स्थानांगसूत्र, 3/476 83. चरणानुयोग, भा.-1, संपा.-मुनि कन्हैयालाल, पृ.-111 84. आचारांगनियुक्ति, गा.-283 85. उत्तराध्ययनसूत्र, 11/14 86. उपधाननुं सुंदर स्वरूप, पृ.-2-4 87. हीरप्रश्न, पृ.-52