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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...405 तप दिन की अपेक्षा- खरतरगच्छ एवं तपागच्छ-दोनों परम्पराओं में उपधानों के दिन समान माने गए हैं, किन्तु प्रथम उपधान में प्रचलित
विधि से चार दिन का अन्तर आता है। खरतरगच्छ में प्रथम उपधान 51 दिन का होता है और तपागच्छ में 47 दिन का, क्योंकि खरतरगच्छ परम्परा में 'पंचमंगल महाश्रुतस्कन्धसूत्र' एवं 'ईरियावहिसूत्र' का उपधान बीस-बीस दिन का होता है, जबकि तपागच्छ में ये दोनों सूत्र अठारह-अठारह दिन में वहन किए जाते हैं।
तपागच्छ की मान्यता है कि यदि एकासन पुरिमड्ढ से करवाया जाय, तो चार एकासन का एक उपवास न होकर, तीन एकासन बराबर एक उपवास होता है। इस प्रकार नौ एकासन होने पर तीन उपवास हो जाते हैं। 18 दिनों तक एकान्तर उपवासपूर्वक एकासन करने से साढ़े बारह उपवास से कुछ कम तप होता है। इसकी कमी पूर्ति प्रायश्चित्त दान देकर की जाती है अर्थात प्रायश्चित्त द्वारा साढ़े बारह उपवास परिमाण तप पूरा किया जाता है।
दूसरा उल्लेखनीय यह है कि तपागच्छ परम्परा वाले पुरिमड्ढपूर्वक किए गए एकासन तप को ही विशेष तप में गिनती करते हैं, किन्तु पुरिमड्ढसहित किए गए आयंबिल और उपवास की विशेष तप में गणना नहीं करते हैं।
पाँच तिथि सम्बन्धी समानता- यदि उपधानवहन की अवधि में प्रचलित विधि के अनुसार शुक्ल पंचमी, द्विपक्ष की अष्टमी एवं द्विपक्ष की चतुर्दशी के दिन एकासन आता हो, तो उन दिनों में आयंबिल तप करवाया जाना चाहिए, यह बात दोनों परम्पराएँ एकमत से स्वीकारती हैं तथा वर्तमान में आयंबिल करवाए जाने की परिपाटी भी मौजूद है। शेष वाचनाविधि, वाचनादिन, तपदिन आदि लगभग समान हैं। ____ माला पहनाने की अपेक्षा- महानिशीथसूत्र के अनुसार मालाग्राही को गुरू के हाथों से माला पहनाई जाना चाहिए, किन्तु उस समय नमस्कारमन्त्र आदि का स्मरण करने सम्बन्धी कोई सूचन नहीं किया गया है।184
तिलकाचार्यकृत सामाचारी में निम्न दो गाथाएँ बोलकर माला पहनाने का निर्देश है, किन्तु माला कौन पहनाए ? तत्सम्बन्धी कोई निर्देश नहीं है। माला पहनाते हुए नवकार मन्त्र आदि का स्मरण करना चाहिए, इसका भी कोई सूचन नहीं है।185