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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...403 जीव है और जीव का लक्षण है।
आशय यह है कि इस अनुष्ठान द्वारा ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप-इन चार आत्मिक गुणों की युगपत् आराधना होती है। इससे ध्वनित होता है कि इस अनुष्ठान द्वारा वस्तुत: आत्मा से परमात्मा, देही से विदेही, संसारी से सिद्ध बनने की साधना की जाती है।
यदि उपधान विधि का ग्रन्थों की अपेक्षा से तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो महानिशीथ, तिलकाचार्य सामाचारी, सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर आदि प्रमुख रूप से मननीय होते हैं। तदनुसार यह विवरण निम्न प्रकार है
प्रत्याख्यान की अपेक्षा- तिलकाचार्यकृत सामाचारी में मालारोपण के दिन कौनसा तप किया जाना चाहिए, तत्सम्बन्धी कोई निर्देश नहीं हुआ है, केवल प्रत्याख्यान करवाए जाने का सूचन है।168 सुबोधासामाचारी में यथाशक्ति आयंबिल आदि तप करने का उल्लेख हुआ है।169
विधिमार्गप्रपा में आयंबिल या उपवास का तप किया जाना चाहिए-ऐसा निर्देश है।170 आचारदिनकर के कर्ता ने विधिमार्गप्रपा का यथावत् पाठ उद्धृत करके आयंबिल या उपवास करने का सूचन किया है।171
इससे सूचित होता है कि मालारोपण के दिन कम से कम आयंबिल-तप का प्रत्याख्यान अवश्य करना चाहिए। आजकल उपवास तप करवाए जाने की परम्परा है। __ प्रदक्षिणा की अपेक्षा- मालारोपण के दिन नमस्कारमन्त्र आदि सूत्रों की अनुज्ञा ग्रहण करने के निमित्त सामान्य समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दी जाती हैं। वर्तमान सामाचारी में यही परम्परा प्रवर्तित है, परन्तु तिलकाचार्यकृत सामाचारी में गुरूसहित समवसरण की तीन प्रदक्षिणा देने का निर्देश है।172 सुबोधासामाचारी में समवसरण की तीन प्रदक्षिणा देने का सूचन है।173 विधिमार्गप्रपा में प्रत्येक उपधान की अपेक्षा सात प्रदक्षिणा देने का सूचन है174 तथा आचारदिनकर में समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दिए जाने के बाद गुरू की तीन प्रदक्षिणा, गुरूसहित समवसरण की तीन प्रदक्षिणा और गुरू तथा संघ सहित समवसरण की तीन प्रदक्षिणा-ऐसे चार बार तीन-तीन प्रदक्षिणा करने का उल्लेख किया गया है।176