________________
402... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... प्रचलन विशेष रूप से है। दोनों परम्पराओं में उपधान करने वाले आराधक वर्ग की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
खरतरगच्छ एवं तपागच्छ दोनों आम्नायों में इससे सम्बन्धित प्राय: सभी विधि-विधान किंचिद् अन्तर के साथ समतुल्य ही हैं। इस परम्परा विषयक सामान्य चर्चा उपधान-विधि के साथ की जा चुकी है।
अचलगच्छ आम्नाय में उपधान की परिपाटी प्रचलित नहीं है। उनके गच्छाधिपतियों का यह मानना है कि उपधान विधि की प्राचीन हस्तलिखित मल प्रति लुप्त हो गई है।
पायच्छंदगच्छ की सामाचारी में 45, 28 एवं 35 दिन के तीन उपधान माने गए हैं। उपधान विषयक सभी विधि-विधान तपागच्छ परम्परा के समान ही अनुष्ठित किए जाते हैं। विदुषीव- ऊँकारश्रीजी म.सा. की सुशिष्या साध्वी सिद्धान्तरसाजी के साथ हुई बातचीत के आधार पर उनकी वर्तमान परम्परा में आठ दिन का ही उपधान होता है।
सामान्यतया त्रिस्तुतिक परम्परा में उपधान से संबंधित सभी विधि-विधान तपागच्छ सामाचारी के अनुसार किये जाते हैं। विशेष यह है कि तपागच्छ
आम्नाय में छठवें उपधान और चौथे उपधान में आयंबिल करवाते हैं, जबकि त्रिस्तुतिक परम्परा में वैसा नहीं है। शेष स्थानकवासी, तेरापंथी एवं दिगम्बर परम्परा में 'उपधान' नाम से कोई अनुष्ठान या विधि-विधान सम्पन्न किया जाता हो-ऐसा पढ़ने या सुनने में नहीं आया है।
समष्टि रूप में कहा जा सकता है कि खरतरगच्छ एवं तपागच्छ- आम्नाय में उपधान का विशेष प्रचलन है। अचलगच्छ एवं पायच्छंदगच्छ में यह परिपाटी अत्यल्प है तथा स्थानकवासी, तेरापंथी एवं दिगम्बर संप्रदाय में यह विधान सम्भवत: होता ही नहीं है। तुलनात्मक अध्ययन
उपधान एक विशिष्ट कोटि का तपोनुष्ठान है। जैन-परम्परा के आवश्यक सूत्रपाठों को चिर-परिचित करने का उत्तम ज्ञान अनुष्ठान है। जैन दर्शन में आत्मा के अनन्तचतुष्टय के रूप में चार गुण माने गए हैं-ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य। किन्तु कहीं-कहीं छ: गुणों का भी उल्लेख है। नवतत्त्व प्रकरण में कहा गया है- जिसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग हो, वही