________________
उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ... 391
द्वितीय उपधानवाही को 'श्री भावारिहंतस्तवाध्ययन आराधनार्थ काउस्सग्गं करूँ?'- यह पद बोलना चाहिए। तृतीय उपधानवाही को 'श्री नामारिहंतस्तवाध्ययन आराधनार्थं काउस्सग्गं करूँ ?' - यह पद बोलना चाहिए। शेष विधि पूर्ववत् ही है। 15
156
तपागच्छ परम्परा में 100 लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग 'सागरवरगंभीरा' तक करने का निर्देश है। शेष विधि पूर्ववत् ही करते हैं। 157
यह कायोत्सर्ग उपधानतप की विशेष शुद्धि के निमित्त किया जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें, तो 17वीं शती तक लगभग किसी भी ग्रन्थ में 100 लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करने की विधि दृष्टिगत नहीं होती है । यह विधि 20 वीं शती के संकलित ग्रन्थों में देखी गई है और वर्तमान में प्रवर्तित है। नवकारवाली गिनने की विधि
खरतरगच्छ की वर्तमान सामाचारी के अनुसार प्रथम उपधान करने वाले उपधानवाही को 52 दिन तक प्रतिदिन सम्पूर्ण नमस्कारमन्त्र की 20 माला गिनना चाहिए ।
दूसरा उपधान करने वाले उपधानवाही को 35 दिन तक प्रतिदिन 'णमुत्थुणसूत्र' की 3 माला गिनना चाहिए तथा तीसरा उपधान करने वाले उपधानवाहक को 28 दिन तक प्रतिदिन 'लोगस्ससूत्र' की 3 माला गिनना चाहिए।158
तपागच्छ की वर्तमान सामाचारी के अनुसार पहले, दूसरे और तीसरे उपधान में बैठने वाले उपधानवाहक को प्रतिदिन नमस्कारमन्त्र की 20 माला फेरना चाहिए। इसमें यह अपवाद है कि जो साधक माला न गिन सके, वह 200 परिमाण गाथाओं का स्वाध्याय कर सकता है। दस गाथाएं एक नमस्कारमन्त्र के बराबर होती हैं। दूसरा नियम यह है कि कम से कम पाँच माला एक ही स्थान पर बैठकर गिनना चाहिए।159
खमासमण देने की विधि
खरतरगच्छ एवं तपागच्छ दोनों परम्पराओं में ऐसा सामाचारी नियम है कि उपधानवाही को प्रतिदिन 100 खमासमण अवश्य देना चाहिए। 160 वर्तमान में यह परम्परा प्रचलित है। यहाँ यह विचार उठ सकता है कि उपधानवाही को प्रतिदिन 100 खमासमण क्यों देना चाहिए ? तथा यह विधि किस ग्रन्थ के