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384... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
देता हूँ।
2. फिर उपधानवाही एक खमासमण देकर कहे- "संदिसह किं भणामो?''- हे भगवन् ! आज्ञा दीजिए, मैं क्या कहूँ ? गुरू कहे - " वंदित्ता पवेयह " - वंदन कर प्रवेदित करो।
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3. तब उपधानवाही ‘इच्छं' कहकर एक खमासमणपूर्वक वन्दन कर कहे"इच्छा ० तुम्हेहि अम्हं पढमउवहाण पंचमंगलमहासुयक्खंध तवो उद्दिट्ठो?" - हे भगवन्! आपके द्वारा मुझे इच्छापूर्वक प्रथम उपधानसूत्र ग्रहण करने की अनुमति दी गई है ?
तब गुरू उस पर वासचूर्ण का निक्षेप करते हुए - "उद्दिट्ठो - 3 खमासमणाणं, हत्थेणं, सुत्तेणं, अत्थेणं तदुभयेणं सम्मं जोगो कायव्वो". तुम्हें नमस्कारसूत्र का मूलपाठ ग्रहण करने की अनुमति दी गई है - ऐसा तीन बार कहें। इसी के साथ महान आचार्यों की परम्परा से प्राप्त सूत्र द्वारा, अर्थ द्वारा एवं सूत्रार्थ द्वारा सम्यक् योग करना चाहिए, ऐसा भी कहें। तब शिष्य कहें" इच्छामो अणुसट्ठि" - मैं आपकी हित शिक्षा सुनने की इच्छा रखता हूँ।
4. उसके बाद उपधानवाही पुनः एक खमासमणसूत्र द्वारा वन्दन कर कहें- 'तुम्हाणं पवेइयं, संदिसह साहूणं पवेएमि' - हे भगवन् ! सूत्र - ग्रहण की अनुमति के बारे में आपको निवेदित कर चुका हूँ, अब आज्ञा दीजिए, अन्य साधुओं (चतुर्विध संघ) के समक्ष उसका प्रकटीकरण करूँ।
5. तब उपधानवाही गुरू की अनुमति प्राप्त कर एक खमासमण देकर नमस्कारमन्त्र का स्मरण करता हुआ समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। प्रदक्षिणा के समय उपस्थित चतुर्विध-संघ उपधानवाहियों के मस्तक पर तीन बार गन्धअक्षत का क्षेपण करें।
6. उसके बाद उपधानवाही एक खमासमण देकर कहें- "तुम्हाणं पवेइयं, साहूणं पवेइयं, संदिसह काउस्सग्गं करेमि " - मैने आपको प्रवेदित किया, चतुर्विध-संघ को प्रवेदित किया, अब पंचमंगल महाश्रुतस्कन्धसूत्र को स्थिर करने के निमित्त कायोत्सर्ग करने की आज्ञा दीजिए ।
7. फिर गुर्वाज्ञा प्राप्तकर एक खमासमणदानपूर्वक "पढमउवहाण पंचमंगलमहासुयक्खंधतव उद्देसनिमित्तं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थसूत्र " कहकर ‘सागरवरगंभीरा' तक लोगस्ससूत्र का चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर