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________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...383 नमस्कारमन्त्र सुनाते हैं।138 तपागच्छ परम्परा में उपधान उत्क्षेपविधि लगभग पूर्ववत् ही करते हैं। इसमें किंचिद् अन्तर आलापक-पाठ सम्बन्धी है जैसे-'वासनिक्षेप करावणी'-यह पाठ खरतरगच्छ की सामाचारी में नहीं है। आलापक में बोले जाने वाले कुछ शब्दों में व्याकरण की दृष्टि से भी भिन्नता है जैसे- खरतरसामाचारी में नंदिकड्ढावणत्थं या नंदिकड्ढावणियं, नंदिपवेसावणियं इत्यादि आलापक-पाठ हैं, जबकि तपागच्छसामाचारी में नंदीकरावणी, देववंदावणी, उद्देसावणी इत्यादि पाठ हैं। यदि अर्थ की दृष्टि से देखें, तो इन पाठों में कोई अन्तर नही हैं।139 ध्यातव्य है कि इस विधि के सम्बन्ध में शेष परम्पराएँ संभवत: तपागच्छ सामाचारी का अनुकरण करती हैं। . वासअक्षत अभिमन्त्रण-विधि . उसके बाद गुरूभगवन्त वर्द्धमानविद्या द्वारा वासचूर्ण को तीन बार अभिमन्त्रित करें, फिर जिनप्रतिमा पर उसका क्षेपण करें, फिर शिष्य के ऊपर डालें। . उसके बाद स्वयं का सकलीकरण (रक्षाकवच) कर पवित्र थाल में रखे हुए सुगन्धित श्रेष्ठ अक्षत के बीच वासचूर्ण को डालकर दोनों को सम्मिश्रित करें। . फिर पुन: वर्द्धमानविद्या एवं सात मुद्राओं (पंचपरमेष्ठि, कामधेनु, सौभाग्य, गरूड़, पद्म, मुद्गर एवं हस्त मुद्रा) द्वारा गन्ध-अक्षत को अधिवासित करें। फिर उन पर 'ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः'-इन मन्त्राक्षरों को लिखें। उसके बाद वह गन्ध-अक्षत चतुर्विध संघ के हाथ में दें। वे लोग भी गन्ध-अक्षत को मुट्ठी में बांधकर रखें।140 जैन धर्म की श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्पराओं में लगभग वास-अक्षत को अभिमन्त्रित करने की यही विधि प्रचलित है। उद्देश (सूत्रों के मूलपाठ ग्रहण करने हेतु सप्तक्षमाश्रमण) विधि • तदनन्तर उपधानवाही एक खमासमण देकर कहे- "इच्छा. संदि. भगवन् ! पढम उवहाणपंचमंगल महासुयक्खंधतव उद्देश निमित्तं मुहपत्ति पडिलेहुं?" इस प्रकार प्रथम उपधानसूत्र का उद्देश करने हेतु मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त्तवन्दन करें। __1. पुन: शिष्य एक खमासमण देकर कहे- "इच्छा. तुम्हे अम्हं पढम उवहाणपंचमंगलमहासुयक्खंध तव उद्दिसह" - हे भगवन्! आप इच्छापूर्वक मुझे प्रथम उपधानसूत्र का मूल पाठ दीजिए। तब गुरू कहे- 'उद्दिस्सामो'- पाठ
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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