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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ... 381
तत्त्वतः यह विधि जिनेश्वर प्रतिमा की भक्ति के निमित्त की जाती है। यह लोक-प्रचलित अवधारणा है कि हर व्यक्ति को श्रेष्ठ कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व देव - गुरू- धर्म का स्मरण अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इष्टोपासना द्वारा इच्छित कार्य निर्विघ्नतया सम्पन्न होते हैं । तदुपरान्त विशेष लाभदायी भी सिद्ध होते हैं। तपागच्छ आदि आम्नायों के अनुसार यह विधि पूर्ववत जाननी चाहिए। उपधान उत्क्षेप (प्रवेश) विधि
जिस दिन उपधानवाही उपधानतप में प्रवेश करें, उस दिन जिनप्रतिमा की पूजा, समवसरण (त्रिगडा ) की पूजा आदि कृत्यों को फिर से पूर्ववत् सम्पन्न करें। उसके बाद गुरू के बायीं ओर खड़े होकर तथा हाथों में चरवला एवं मुखवस्त्रिका ग्रहण कर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें।
तदनन्तर उपधानग्राही एक खमासमणसूत्रपूर्वक वंदन कर कहें"इच्छा. संदि. भगवन्! पढम उवहाण पंचमंगल - महासुयक्खंधतव उक्खेवनिमित्तं मुहपत्ति पडिलेहेमि' - हे भगवन् ! आपकी इच्छापूर्वक प्रथम पंचमंगलश्रुतस्कन्ध नामक उपधान में प्रवेश करने के निमित्त मुखवस्त्रिका प्रतिलेखित करूँ? गुरू कहे - 'पडिलेहेह' - प्रतिलेखित करो। तब उपधान इच्छुक मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर दो बार द्वादशावर्त्तवंदन दें। • पुनः एक खमासमण देकर कहें- "इच्छा. तुब्भे अम्हं पढम उवहाणपंचमंगल महासुयक्खंधतवं उक्खिवह'"- हे भगवन् ! आपकी इच्छा से मुझे प्रथम उपधानतप में प्रवेश करवाईए। गुरू कहे- 'उक्खिवामो'- मैं उपधान तप में प्रवेश करवाता हूँ।
कायोत्सर्ग विधि • उसके बाद उपधानवाही 'इच्छं' कहकर पुनः खमासमणसूत्र द्वारा वन्दन कर बोलें- "इच्छा. तुब्भे अम्हं पढमउवहाणपंचमंगल महासुयक्खंध उक्खिवावणियं नंदिपवेसावणियं 134 काउस्सग्गं करावेह" - हे भगवन् ! आप इच्छापूर्वक मुझे प्रथम उपधान तप में एवं नंदी में प्रवेश करने के निमित्त कायोत्सर्ग करवाईए। तब गुरू कहे- 'करेह’कायोत्सर्ग करो। उसके बाद उपधानवाही 'इच्छं' कहकर एक खमासमण देकर"पढमउवहाण- पंचमंगलमहासुयक्खंधतव उक्खिवावणियं नंदिपवेसावणियं करेमि काउस्सग्गं" साथ ही अन्नत्थ सूत्र बोलकर कायोत्सर्ग में लोगस्ससूत्र या नमस्कारमन्त्र का चिन्तन करें। ( वर्तमान में प्राय: