________________
उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...379 देकर कहे- "इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं पढमउवहाण पंचमंगलमहासुयक्खंधतवे पवेसेह" हे भगवन्! आप मुझे इच्छापूर्वक प्रथम पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध नामक उपधान में प्रवेश करवाइए। तब गुरू ‘पवेसामो'-प्रवेश करवाता हूँ-ऐसा कहकर "प्रभातिकपडिक्कमणे नवकारसी पच्चक्खाण करजो, अंग पडिलेहण संदिसावजो'- अर्थात कल प्राभातिक प्रतिक्रमण में नवकारसी का प्रत्याख्यान
और अंग प्रतिलेखन की क्रिया करने का आदेश देता हूँ- ऐसा कहते हैं। तब उपधानवाही 'तहत्ति' कहता है।
• दूसरा एवं तीसरा उपधान करने वाले उपधानवाही भी जिस सूत्रोपधान में प्रवेश कर रहे हों, उस सूत्र का नाम लेकर पूर्ववत सर्व क्रियाएँ करें। जैसेदूसरे उपधान में प्रवेश करने वाले "तइयं उवहाणं भावारिहंतत्थयसुयक्खंध-उवहाणतवे पवेसेह"- इस आलापक का उच्चारण करें तथा तीसरे उपधान में प्रवेश करने वाले 'पंचमोवहाणं-नामारिहंतत्थय-सुयक्खंधतवे पवेसेह' आलापक का उच्चारण करें।
• तदनन्तर दो बार खमासमणसूत्रपूर्वक वन्दन कर गुरूमुख से चतुर्विधआहार का प्रत्याख्यान करें। उसके बाद अपने स्थान में जाकर दैवसिक प्रतिक्रमण करें। यह उपधान प्रवेश की मूलविधि है। __इस विधि का सर्वप्रथम उल्लेख श्रीसप्तोपधानविधि'(19वीं शती) नामक संस्कृत रचना में प्राप्त होता है। इससे पूर्व लगभग किसी भी ग्रन्थ में यह विधि नहीं है। मूलत: यह कृति खरतरगच्छ की परम्परानुसार लिखी गई है। इससे प्रतीत होता है कि सम्भवतः यह प्रवेश विधि खरतरगच्छ में ही प्रचलित हों। वर्तमान में यह परिपाटी प्रवर्तित है। ___ इस विषय में तपागच्छ आदि परम्पराओं के लिए कुछ भी कह पाना संभव नहीं है, क्योंकि तत्सबन्धी कोई मूल ग्रन्थ पढ़ने में नहीं आया है। हाँ, इन परम्पराओं से सम्बन्धित संकलित पुस्तकें अवश्य देखी गईं हैं, किन्तु उनमें यह विधि वर्णित नहीं है।
सप्तोपधान कृति में यह उल्लिखित है कि किसी कारण से उपधान प्रवेश के पूर्व दिन उक्त क्रिया नहीं की जा सकी हो, तो दूसरे दिन रात्रिक प्रतिक्रमण करने के पहले पूर्वोक्त क्रिया अवश्य करना चाहिए। उपधानवाही श्राविका को रात्रिक प्रतिक्रमण में नवकारसी के प्रत्याख्यान करना चाहिए।130