SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 342... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक यह सामान्य सामाचारी है कि उपधान - तप में प्रवेश करने के बाद यदि किसी को नया वस्त्र या उपकरण जरूरी हो, तो तीन दिन तक ले सकते हैं। उसके बाद उपकरण आदि कोई भी वस्तु ग्रहण करना नहीं कल्पता है। दूसरी सामाचारी यह है कि उपधानव्रती जितने भी उपकरण - वस्त्र आदि ग्रहण करता है, उन उपकरणों की प्रतिदिन दो बार प्रतिलेखना करनी चाहिए। यदि प्रतिलेखना करना भूल जाए, तो आलोचना डायरी में लिख देना चाहिए। तीसरा समझने योग्य तथ्य यह है कि उपधान - तप में कीमती वस्त्र, चटकीले-भड़कीले वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। श्राविकाओं को सौभाग्यचिह्न वाले आभूषणों को छोड़कर अन्य अलंकारों का त्याग कर देना चाहिए। .... उपधान दिवस निरस्त होने के कारण उपधान-तप वहन करते समय जानबूझकर या अनजाने में आगे कहे जाने वाले दोषों का सेवन हो जाए, तो उपधान के दिन कम हो जाते हैं, फिर उन दिनों की पूर्ति करने के लिए उतने ही दिन पौषधसहित तप करवाया जाता है, अतः उपधानवाहियों को इन दोषों से बचने का ध्यान रखना चाहिए। ये दोष निम्न हैं 1. उपवास में या आयंबिल - नीवि करके उठने के बाद उल्टी हो जाए और उसमें अनाज के अंश दिखाई दें। 2. एकासनादि करके उठ जाने पर थाली में धान्य का कण पड़ा रह जाए। 3. थाली में जूंठन छोड़ दिया जाए। 4. प्रत्याख्यान पूर्ण करना भूल जाए । 5. आयंबिल - नीवि आदि करने के बाद चैत्यवंदन करना भूल जाए। 6. भोजन करने के बाद चैत्यवंदन करने के पहले पानी पी लिया जाए। 7. सायंकालीन प्रतिलेखनादि की क्रिया करने के बाद मल विसर्जन के लिए जाए। 8. रात्रि में या प्रात:कालीन प्रतिलेखन आदि क्रिया के पूर्व मल- विसर्जन के लिए जाए। 9. स्थंडिलभूमि की प्रतिलेखना करना रह जाए। 10. पौरूषी पढ़ाना भूल जाए। 11. रात्रि में संथारापौरूषी पढ़ाने के पहले सो जाए ।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy