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________________ 314... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... ___ 1. द्रव्य उपधान और 2. भाव उपधान। सुखपूर्वक निद्रा लेने के लिए तकिया आदि का आधार लेना द्रव्य उपधान है। इस प्रकार उपधान शब्द का एक अर्थ तकिया भी है। जिस क्रिया द्वारा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तपरूप आत्मा की पुष्टि होती है, वह भाव उपधान है। परमात्मा महावीर ने द्रव्य और भाव दोनों उपधान की साधना की थी। • स्थानांगटीका में 'उपधान' की यह व्याख्या की गई है 4 "मोक्षं प्रत्युपसामीप्येनदधातीत्युपधानम्। अनशनादिके तपसि' अर्थात जो आत्मा को मोक्ष के निकट रखता है-ऐसा अनशन आदि तप उपधान है। यही व्याख्या आवश्यकसूत्र और पंचवस्तुक की वृत्तियों में भी बतलाई गई है। . • भगवती टीका में उपधान की परिभाषा देते हुए लिखा गया है कि "उपदधाति-पुष्टिं नयति अनेनेत्युपधानम्' अर्थात जिस क्रिया द्वारा आत्मा पुष्टि को प्राप्त होती है, वह उपधान है। यहाँ आत्म पुष्टि से तात्पर्य जीव का ज्ञानादि गुण पुष्ट होने से है। उपधान तप की साधना से ज्ञान आदि की प्राप्ति, उनकी शुद्धि एवं वृद्धि होती है। जैसे वाचनापूर्वक सूत्रादि का अध्ययन करने से ज्ञान की पुष्टि होती है, सामायिक-पौषध आदि क्रियाओं द्वारा चारित्र की पुष्टि होती है, उपवास, आयंबिल, नीवि द्वारा बाह्यतप और स्वाध्याय, कायोत्सर्ग, ध्यान आदि के द्वारा आभ्यंतर तप की पुष्टि होती है। इसी प्रकार उपधान वहन के द्वारा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की स्वत: पुष्टि होती है। • दशाश्रुतस्कंधसूत्र की टीका एवं पंचाशकटीका में उपधान की व्याख्या करते हुए श्रुत ज्ञान की प्राप्ति के साधन को उपधान कहा गया है। वह व्युत्पत्ति इस प्रकार है "उपधीयते उपष्टभ्यते श्रुतमनेनेति उपधानम्" अर्थात जिसके द्वारा श्रुतज्ञान की प्राप्ति हो, वह साधन उपधान है। इसमें यह भी कहा गया है कि "चारित्रोपष्टमनहेतौ श्रुतविषये उपचारे" अर्थात जो चारित्र की पुष्टि में हेतु है, उस ज्ञान को विधिपूर्वक ग्रहण करना उपचार से उपधान है। • व्यवहारटीका के अनुसार जो अध्ययन को पुष्ट करे, वह उपधान है।'
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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