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पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ... 283
खमासमणपूर्वक 'इच्छा. संदि ! राइय मुँहपत्ति पडिलेहुं' कहकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करते हुए द्वादशावर्त्तवन्दन करें। • फिर 'इच्छा. संदि. भगवन्! राइय आलोउं ? इच्छं आलोएमि जो मे राइओ' और 'सव्वस्सवि राज्ञ्य. ' का पाठ बोलें। • उसके बाद पदस्थ गुरू हों, तो उन्हें द्वादशावर्त्तवन्दन 'इच्छकार सुहराई' 'अब्भुट्ठिओमि' पाठ बोलकर थोभ वन्दन करें। • उसके बाद निर्धारित प्रत्याख्यान को गुरू मुख से ग्रहण करें। फिर दो खमासमणपूर्वक 'बहुवेलं' का आदेश लें।
यह विधि प्रचलित परम्पराओं में लगभग समान ही है। उग्घाड़ापौरूषी विधि
जब दिनमान पुरूष-परिमाण की छाया जितना चढ़ जाए अर्थात पुरूष परिमाण जितनी छाया आ जाए, उस समय को पौरूषी कहते हैं । उघाड़ा का अर्थ है- उद्घाटक, दिन का सम्यक् रूप से प्रकट होना। जैन सामाचारी के अनुसार दिन की पौन पौरूषी जितना समय बीत जाने पर पौषधव्रती को उग्घाड़ा-पौरूषी की विधि करना चाहिए।
यह विधि श्वेताम्बर-मूर्तिपूजक की प्रायः सभी परम्पराओं में आज भी प्रचलित है और लगभग सभी में समान ही है । मूलतः यह विधि भोजन सम्बन्धी पात्रों की प्रतिलेखना करने से सम्बन्धित है। यह अनुष्ठान मुनि जीवन का भी आवश्यक अंग माना गया है। जैन मुनियों की यह सामाचारी है कि वे अपने भोजन - पानी आदि के पात्रों की प्रतिलेखना दिन का पौरूषी जितना समय व्यतीत होने पर ही करें। आज इस विधि में काफी परिवर्तन आ चुका है, जिसमें काल का दुष्प्रभाव, संहनन, शैथिल्य एवं मानसिक दुर्बलता आदि कई कारण हैं।
उघाड़ा पौरूषी की मूल विधि यह है - यदि पौषधव्रती अधिक हों, तो यह विधि सामूहिक रूप से करना चाहिए। • सर्वप्रथम एक खमासमणसूत्रपूर्वक वन्दन करके पौषधव्रती प्रकट में बोलें- 'इच्छा. संदि ! उग्घाड़ा पौरूषी भणावुं ? 43 'इच्छं' कहकर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। उसके बाद एक खमासमण पूर्वक 'इच्छा. संदि.! पडिलेहणं करोमि?' 'इच्छं' कहें। फिर 'इच्छा. संदि . ! पडिलेहणं मुहपत्ति पडिलेहुं?' 'इच्छं' कहकर पात्र आदि की प्रतिलेखना करने