________________
सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...259 सामायिक पारने के बाद निम्नोक्त पाठ बोला जाता हैफासियं, पालियं, सोहियं, तिरियं, किट्टियं, अणुपालियं, आणाए, आराहिंय, न भवइ इण आठ पच्चक्खाण सहित सामायिक नहीं पाली होय तो तस्स मिच्छामि
दुक्कड। 68. सचित्रश्रावकप्रतिक्रमण (तेरापंथी) 69. श्रावकचर्या (दिगम्बर), पृ.-238-44 70. आवर्त्त-प्रशस्तयोग को एक अवस्था से हटाकर दूसरी अवस्था में ले जाने का नाम
आवर्त है। ये आवर्त बारह होते हैं। सामायिकदण्ड के आरम्भ और समाप्ति में तीनतीन, इसी तरह चतुर्विंशातिस्तवदण्ड के प्रारम्भ और अन्त में तीन-तीन कुल बारह
आवर्त होते हैं। 71. शिरोनति-सिर झुकाने की क्रिया शिरोनति कहलाती है। 72. कृतिकर्म क्रिया चारों दिशाओं में की जाती है। उसकी विधि यह है
पूर्व दिशा की ओर मुख करके नौ बार नमस्कारमन्त्र का जाप करना, फिर पूर्वदिशा
और आग्नेय (कोण) दिशा में स्थित 1. अरिहन्त 2.सिद्ध 3. केवलिजिन 4. आचार्य 5. उपाध्याय 6. साधु 7. जिनधर्म 8. जिनागम 9. जिनप्रतिमा 10. जिनचैत्य को मैं वन्दना करता हूँ-ऐसा बोलना। यह पूर्वदिशा का कृतिकर्म हुआ। शेष दिशाओं-विदिशाओं में भी इसी प्रकार की क्रिया करना कृतिकर्म कहलाता है।
श्रावकचर्या, पृ.-240 73. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ.-15 74. वही, पृ.-15 75. गीता, 6/33, 2/48 76. धम्मपद, राहुल सांस्कृत्यायन, 14/7