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258... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
समाइअ वयजुत्तो, जावमणे होई नियमसंजुत्तो।। छिन्नई असुहंकम्मं, सामाइयजत्ति आवारा ।।6।।
सामाइअम्मि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा।।
एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ||7||
सामायिक व्रत फासिअं, पालिअं, पूरियं, तीरियं, कित्तिअं आहारिअं, विधि लीधुं, विधि कीधुं, विधि पाल्युं, विधि करता कोई अविधि, आशातना हुई होय, ते सवि हुमने, वचने कायाएकरी मिच्छामि दुक्कडं ।।1।
पाटी, पोथी, कवली, ठवणी, नवकारवाली, कागले पग लगाड्यो होय, गुरू ने आसने, वेसणे, उपगरणे पग लगाड्यो होय, ज्ञानद्रव्यतणी आशातना थई होय, ते सविहुं मने, वचने, कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं। अढीद्वीप ने विषे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका जे कोई प्रभु श्रीवीतरागदेवजी आज्ञापाले, पलावे, भणे, भणावे, अनुमोदे, तेहनेमारी त्रिकाल वंदना होजो, सीमंधर प्रमुख बीस विहरमान जिनने मारी त्रिकाल वंदना होजो, अतीत चोवीशी, अनागत चोवीशी, वर्तमान चोवीशी ने मारी त्रिकाल वंदना होजो, ऋषभानन, चंद्रानन, वर्द्धमान, वारिषेण, ए चार शाश्वता जिनने मारी त्रिकाल वंदना होजो, दश मनना, दश वचनना, बार कायाना ए बत्रीश दोषो मांहेलो सामायिक व्रतमांहे जिको कोई दोष लाग्यो होय, ते सवि हुं मने, वचने, कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं ।। तमेव सच्चं निस्संकं जंजं जिणेहिं पवेइयं।। तं तं धम्मसव्वफलं मम होई, साचानी संद्दहणा, जुठानुं मिच्छामि दुक्कडं ॥ सर्वमंगल मांगल्यं, सर्व कल्याणकारणं । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैन शासनं।।
64. पंचप्रतिक्रमणसूत्र, विधिसहित (श्री पार्श्वचन्द्रगच्छीय) पृ.-1-9, 56-64 65. सामायिकसूत्र (त्रिस्तुतिकगच्छीय), पृ. 2-10
66. सामायिकसूत्र (स्थानकवासी), पृ.-18-21
67. स्थानकवासी-परम्परा में सामायिक पारते समय निम्न पाठ बोला जाता हैनवमा सामायिक व्रत ना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोऊं सामायिक में मन वचन काया ना योग पाडुवा ध्यान प्रवर्त्ताण्या होय, सामायिक में समता न कीधी होय, अणपूगी पारी होय, नवमा सामायिक व्रत में जे कोई अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार आणाचार जाणतां अजाणतां पाप दोष लाग्यो होय तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥
सामायिक में दस मन का, दस वचन का, बारह काया का, बत्तीसदोषां मांहेलो कोई दोष लग्यो होय तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं