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________________ 254... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... 8. भगवद्गीता, 2/48 9. भगवतीसूत्र, 1/9 10. (जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलि भासिय।। (क) आवश्यकनियुक्ति, गा.- 797, नियुक्तिसंग्रह पृ.-78 (ख) नयमसार, 127 11. अष्टकप्रकरण, 29/1 12. सावज्जजोगविरओ, विगुत्ते छसु संजओ। उवउत्तो जयमाणो, आया सामाइयं होइ।। आवश्यक मलयगिरिटीका-49 13. विशेषावश्यकभाष्य, गा.-2635-36 14. सामाइयं समइयं, सम्मावाओ समास संखेवो। अणवज्जं य परिण्णा, पच्चक्खाणे य ते अट्ठ।। आवश्यकनियुक्ति, गा. 864 15. वही, 796 16. आदिमंगलं सामाइयज्झयणं, सव्वमंगलं निहाणंनिव्वाणं। पाविहितित्ति काऊण, सामाइयज्झयणं भवति।।। आवश्यकचूर्णि, भा.1,पृ.3 17. पुरूषार्थसिद्धयुपाय, 149 18. वही, 148 19. त्यक्तातरौद्रध्यानस्य, त्यक्त सावध कर्मणः। मुहूर्त समता या तां, विदुःसामायिकम् व्रतम्॥ __ योगशास्त्र, 3/82 20. संखिवणं संखेवो, सो जं थोवक्खरं महत्थं च। सामाइयं संखेवा, चोद्दसपुव्वत्थपिंडोत्ति। विशेषावश्यकभाष्य गा.-2796 21. तत्थज्झयणं सामाइयं ति, समभावलक्खणं पढम। जं सव्वगुणाहारो, वोमं पिव सव्वदव्वाणं।। विशेषावश्यकभाष्य, 905
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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