SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 232... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... - निष्पत्ति- यदि ऐतिहासिक दृष्टि से इन दोषों का अध्ययन करते हैं तो आगम ग्रन्थों, टीका साहित्यों एवं पूर्वकालीन ग्रन्थों में लगभग बत्तीस दोषों का वर्णन उपलब्ध नहीं होता है, मात्र शुद्ध सामायिक करने का निर्देश मिलता है। अर्वाचीन संकलित ग्रन्थों में ही पूर्वोक्त निर्देश प्राप्त होता है। इन दोषों से सम्बन्धित प्राकृत गाथाएँ भी उल्लिखित हैं, किन्तु वे गाथाएँ किस ग्रन्थ से उद्धृत की गई हैं, कोई सूचन नहीं है। इससे ज्ञात होता है कि सामायिक सम्बन्धी बत्तीस दोषों का वर्णन आगमेतर कालीन है। तुलनात्मक दृष्टि से पर्यावलोकन करें, तो श्वेताम्बर की सभी परम्पराएँ उक्त दोषों को स्वीकार करती हैं। दिगम्बर ग्रन्थों में इन दोषों की विस्तृत चर्चा का अभाव है। सामायिकव्रती की आवश्यक योग्यताएँ सामायिक एक अन्तर्मुखी साधना है। यह साधना परम्परामूलक नहीं है, अत: सामायिक का अधिकारी प्रत्येक व्यक्ति को माना गया है। इसके लिए लिंग, वय, वर्ण, जाति या राष्ट्र की मर्यादाएँ भी बाधक नहीं हैं। जैन साहित्य में सामायिक की योग्यता रखने वाले व्यक्ति के लिए कुछ गुण आवश्यक माने गए हैं। विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार प्रियधर्मा, दृढ़धर्मा, संविग्न, पापभीरू, अशठ, क्षान्त, दान्त, गुप्त, स्थिरव्रती, जितेन्द्रिय, ऋजु, मध्यस्थ, समित और साधु संगति में रत-इन गुणों से सम्पन्न गृहस्थ सामायिक करने का अधिकारी होता है।34 ___ अनुयोगद्वार के अनुसार जिस व्यक्ति की आत्मा संयम, नियम और तप में जागरूक है तथा जो त्रस और स्थावर, सब प्राणियों के प्रति समभाव रखता है, उसे ही सामायिक व्रत होता है।35 जैनाचार्यों की दृष्टि से निम्न योग्यताएँ भी सामायिकधारी के लिए आवश्यक मानी गई हैं • सामायिक करने वाला व्यक्ति देशविरति या सर्वविरति(व्रत) का पालन करने वाला होना चाहिए। • निरन्तर सामायिक का अभ्यासी होना चाहिए। सामायिक के प्रति पुरूषार्थ करने वाला होना चाहिए। • देव, गुरू और धर्म के प्रति अनन्य श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए। • पाँच अणुव्रतों और तीन गुणव्रतों का धारक होना चाहिए।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy