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सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ... 223
रस है, उसी प्रकार साधना का सार समता है । यदि पुष्प से गंध, दूध से घृत, तिल से तेल निकल जाए, तो वे निस्सार बन जाते हैं, वैसे ही साधना से सामायिक निकल जाए, तो साधना निस्सार हो जाती है। समता के अभाव में उपासना उपहास है।
जैनाचार्यों ने सामायिक के महत्व का प्रतिपादन करते हुए व्याख्यायित किया है कि आवश्यकसूत्र का प्रथम अध्ययन सामायिक है। सामायिक का लक्षण है - समभाव। जैसे आकाश सब द्रव्यों का आधार है, वैसे ही यह चारित्र आदि गुणों का आधार है। यह सभी प्रकार की विशिष्ट लब्धियों की प्राप्ति में हेतुभूत है। इससे पापों पर अंकुश लगता है 1 2 1
• षडावश्यक में सामायिक प्रथम आवश्यक है। चतुर्विंशति आदि शेष पाँच आवश्यक एक अपेक्षा से सामायिक के ही भेद हैं, क्योंकि सामायिक ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप है और चतुर्विंशति आदि में इन्हीं गुणों का समावेश है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र को प्रधान गुण माना गया है। 22
• सामायिक से सावद्ययोग यानी असत् प्रवृत्ति से विरति होती है | 23 • सामायिक मूल्यवान रत्न के समान है। रत्न को जितना तराशा जाए, उसमें उतना ही अधिक निखार आता है, उसी प्रकार मानसिकवाचिक एवं कायिक सावद्य व्यापारों को जितना - जितना दूर किया जाए, उतना-उतना आत्मप्रकाश बढ़ता है।
• सामायिक की तुलना करते हुए यह भी कहा गया है कि कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक लाख स्वर्णमुद्रा का दान करें और कोई एक सामायिक करें, इसमें एक सामायिक करने वाले का महत्व अधिक आंका गया है। कहीं-कहीं पर ऐसा भी उल्लेख है कि कोई लाख वर्ष तक प्रतिदिन एक लाख मुद्राओं का दान करता रहे, तो भी एक सामायिक की बराबरी नहीं हो सकती है।24
• एक जगह कहा गया है कि करोड़ों जन्मों तक निरन्तर उग्र तपश्चर्या करने वाला साधक जितने कर्मों को नष्ट नहीं कर सकता, उत कर्मों को समताभावपूर्वक सामायिक करने वाला साधक मात्र अल्प क्षणों में नष्ट कर डालता है। 25
• जो भी साधक अतीतकाल में मोक्ष गए हैं, वर्तमान में जा रहे हैं