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________________ बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...199 व्रतग्राही अपने हिसाब से परिग्रहादि व्रतों की नोंध (पुस्तक) बनाता है जो टिप्पनक कहलाता है। इस टिप्पनक का प्रयोजन हिंसा, परिग्रह, दिशा आदि के अनावश्यक पापकार्यों से विरत होने हेतु यथाशक्ति मर्यादा का सूचीपत्र तैयार करना है, ताकि आगामीकाल के लिए गृहीत व्रत का भंग न हो। यदि किसी को गृहीत मर्यादाएँ विस्मृत हो जाए तो पुन: टिप्पनक द्वारा स्मरण की जा सकती हैं। परिग्रह का दायरा व्यापक होने से प्रत्येक वस्तु की मर्यादा लिखना आवश्यक होता है। इस तरह टिप्पनक की अनिवार्यता स्वयमेव सुसिद्ध है। तुलनात्मक विवेचन यदि बारह व्रतारोपणसंस्कार-विधि का तुलनापरक दृष्टि से विचार करें तो ज्ञात होता है कि जैन परम्परा में गृहस्थ को श्रावकत्व की दीक्षा देने हेतु एक सुनिश्चित विधि अस्तित्व में आई है। यह विकास-यात्रा प्रमुखत: विक्रम की बारहवीं शती से लेकर सोलहवीं शती पर्यन्त के ग्रन्थों में दृष्टिगत होती है। मेरी शोध यात्रा के आधारभूत ग्रन्थ भी ये ही हैं। इन ग्रन्थों के परिप्रेक्ष्य में इस व्रतारोपण विधि का तुलनात्मक विवेचन इस प्रकार है नाम की दृष्टि से- यह व्रतारोपण विधि तिलकाचार्य सामाचारी131 में देशविरतिनन्दीविधि के नाम से वर्णित है। इसी प्रकार सुबोधासामाचारी132 में देशविरतिसामायिकविधि के नाम से, विधिमार्गप्रपा133 में परिग्रहपरिमाण सामायिकव्रतारोपण विधि के नाम से एवं आचारदिनकर134 में देशविरतिसामायिक आरोपणविधि- इस नाम से उल्लिखित है। इससे ज्ञात होता है कि पूर्वोक्त ग्रन्थों में इस विधि की चर्चा भिन्न-भिन्न नामों को लेकर की गई है। यद्यपि इनमें नाम-साम्यता नहीं है, किन्तु इस विधि का मूल प्रतिपादन सभी ग्रन्थों में समान रूप से किया गया है। नन्दीरचना की दृष्टि से- इस व्रतारोपण के प्रारम्भ में विधिपूर्वक जिन प्रतिमा की स्थापना की जाती है, इसे नन्दीरचना कहते हैं। इस व्रतारोपणसंस्कार के लिए नन्दीरचना की जानी चाहिए या नहीं ? इस विषय को लेकर सुबोधासामाचारी में विशेष रूप से नन्दी करने का निर्देश है।135 विधिमार्गप्रपाकार ने इसका स्पष्ट संकेत नहीं दिया है किन्तु शेष विधि हेतु सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का सूचन किया है।136 इससे लगता है कि इस
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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