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________________ बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...185 जैसे द्विविध-द्विविध, द्विविध-एकविध आदि इस प्रकार पाँच व्रत के 5 x 6 = 30 प्रकार होते हैं। इसमें उत्तरगुण एवं अविरत सम्यग्दृष्टि- ये दो भेद जोड़ने से व्रतग्रहण के 30 + 2 = 32 प्रकार होते हैं। इसके अनुसार व्रतग्राही श्रावक भी 32 प्रकार के होते हैं। ___आवश्यकनियुक्ति (गा. 1558-1559) में भी व्रतग्राही श्रावक के बत्तीस प्रकार बताये गये हैं। 4. व्रती श्रावक के सात सौ पैंतीस भेद इस विकल्प में क्रमश: 49, 147 एवं 735 भेद भी इसी रीति से बनते हैं। सर्वप्रथम 49 भेदों को समझने के लिए निम्न नौ विकल्प समझना आवश्यक है___1. त्रिविध-त्रिविध- स्थूलहिंसादि सावध पाप न करना, न करवाना, न करने वाले का अनुमोदन करना, मन-वचन और काया से। अग्रिम भेदों को इसी तरह समझें। 2. त्रिविध-द्विविध- यह विकल्प तीन भेद वाला है, शेष पूर्ववत् समझें। 3. त्रिविध-एकविध- इस विकल्प के उत्तरभेद तीन हैं। 4. द्विविध-द्विविध- इस विकल्प के उत्तरभेद तीन हैं। 5. द्विविध-द्विविध- इसके उत्तरभेद नौ हैं। 6. द्विविध-एकविध- इसके उत्तरभेद नौ हैं। 7. एकविध-द्विविध- इसके उत्तरभेद तीन हैं। 8. एकविध-द्विविध- इस विकल्प के नौ भेद हैं। 9. एकविध-एकविध- इस विकल्प के भी नौ भेद हैं। इस प्रकार 9 भेद के उत्तरभेद कुल 49 होते हैं 147 भेद- पूर्वोक्त 49 भेदों को भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीन काल से गुणा करने पर श्रावक व्रत के 49 x 3 = 147 भेद होते हैं। यह ज्ञातव्य है कि प्रत्याख्यान त्रैकालिक होता है। अतीत के पापों का निन्दा द्वारा, वर्तमान के पापों का संवर द्वारा और भावी के पापों का त्याग द्वारा प्रत्याख्यान किया जाता है। 735 भेद- पाँच अणुव्रत 147 विकल्प से ग्रहण किये जा सकते हैं अत: 147 x 5 से गुणा करने पर 735 भेद होते हैं।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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