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________________ 170... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... किया जा सकता है। व्रतधारी गृहस्थ के द्वारा इस व्रत का नियमित रूप से पालन किया जा सके, तद्हेतु चौदह नियम की व्यवस्था की गई है। वे चौदह नियम ये हैं1. सचित्त- फल, साग, आदि की संख्या या मात्रा निश्चित करना। 2. द्रव्य- खाने-पीने सम्बन्धी वस्तुओं की मर्यादा करना। जैसे भोजन के समय अमुक संख्या से अधिक वस्तुओं का उपभोग नहीं करूंगा। 3. विगय- घी, तेल, दूध, दही, गुड़(शक्कर) एवं तले हुए पदार्थ इन छ: ___की मर्यादा करना। 4. उपानह- जूते, चप्पल, मौजे, आदि पाँव में पहनी जाने वाली वस्तुओं की संख्या निश्चित करना। 5. तंबोल- पान, सुपारी, इलायची, आदि मुख को सुगन्धित करने वाली ___वस्तुओं की संख्या एवं वजन का परिमाण रखना। 6. वस्त्र- प्रतिदिन पहने जाने वाले वस्त्रों की संख्या रखना। 7. कुसुम- पुष्प, इत्र, आदि सुगन्धित पदार्थों की संख्या एवं वजन निश्चित करना। 8. वाहन- स्कूटर, बस, ट्रेन, आदि सवारी वाले वाहनों की संख्या का निर्धारण करना। 9. शयन- पलंग, खाट, गादी, चटाई, आदि बिछाने योग्य वस्तुओं एवं स्थान की सीमा करना। 10. विलेपन- शरीर पर लगाने योग्य केसर, चंदन, तेल आदि पदार्थों की मर्यादा करना। 11. ब्रह्मचर्य- मैथुन सेवन की मर्यादा करना। 12. दिशा- दिशाओं में गमनागमन एवं तत्सम्बन्धी प्रवृत्तियों की मर्यादा करना। 13. स्नान- स्नान एवं जल की मर्यादा करना। 14. भक्त- अशन, पान, खादिम, स्वादिम- इन चार प्रकार के आहार की संख्या एवं सीमा निश्चित करना। इन चौदह नियमों का चिन्तन करके प्रत्येक नियम के सम्बन्ध में प्रतिदिन मर्यादा निश्चित की जाती है। इन नियमों के विषय में ऐसी परम्परा है
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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