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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...161 12. पेय विधि- दूध, शर्बत, मट्ठा आदि की मर्यादा रखना। 13. भोजन विधि- विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों में से स्वयं के लिए योग्य
भोज्य-पदार्थों की संख्या एवं मात्रा की मर्यादा रखना। 14. ओदन विधि- चावल के प्रकार की संख्या एवं मात्रा निश्चित करना। 15. सूप विधि- दालों की संख्या एवं उनकी मात्रा निश्चित करना। 16. घृत विधि- भोजन को सुस्वादु बनाने वाले घृत, दूध, दही, तेल,
मिष्ठान्न आदि विगय पदार्थ की संख्या एवं मर्यादा रखना। 17. शाक विधि- भोजन के साथ व्यंजन के रूप में खाए जाने वाले पदार्थ
जैसे-बथुआ, ककड़ी, घीया आदि की संख्या निश्चित करना। 18. माधुरक विधि- मीठे फल, इसमें दो प्रकार के फल आते हैं। हरे फलों
में आम, केला, पपीता, नारंगी, सेव आदि की संख्या और सूखे फलों
में बादाम, पिस्ता, किशमिश आदि की संख्या निश्चित करना। 19. जेमण विधि- क्षुधा निवारणार्थ खाए जाने वाले रोटी, पूड़ी, बाटी आदि
की मर्यादा रखना। 20. पानी विधि- विविध प्रकार के उष्णोदक, शीतोदक, गन्धोदक आदि पेय
पदार्थ की मर्यादा रखना। 21. मुखवास विधि- पान, सुपारी, इलायची आदि की संख्या एवं मर्यादा
रखना। 22. वाहन विधि- घोड़ा, गाड़ी, नाव, जहाज आदि सवारी के साधनों की
जातियाँ एवं संख्या का निर्धारण करना। 23. उपानह विधि- बूट, चप्पल, जूते आदि की संख्या रखना। 24. शय्यासन विधि- पलंग, पाट, गद्दा, तकिया आदि की संख्या रखना। 25. सचित्तद्रव्य- सचित्त वस्तुओं की मर्यादा करना। 26. द्रव्य- खाने योग्य विविध प्रकार की वस्तुओं की संख्या एवं उनकी
मर्यादा करना।
दिगम्बर परम्परावर्ती साहित्य में यम एवं नियम-दो प्रकार के त्याग का निर्देश है। अल्पकाल के लिए जो त्याग किया जाता है, वह नियम तथा यावज्जीवन के लिए जो त्याग किया जाता है, वह यम कहलाता है।67 सर्वार्थसिद्धि में उपभोग-परिभोग के तीन प्रकार बताए गए हैं- 1. दिन, रात,