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________________ 160... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... शरीर के बाह्यभाग से भोगे जाते हैं वे परिभोग हैं। प्रस्तुत व्रत को स्वीकार करने वाला व्यक्ति प्रतिज्ञा करता है-“मैं उपभोग परिभोग सम्बन्धी पदार्थों का इतने परिमाण में एवं इतनी संख्या में उपभोग परिभोग करूंगा।" इस प्रकार उपभोग और परिभोग की मर्यादा निश्चित करना उपभोगपरिभोग परिमाणव्रत कहलाता है। यह व्रत मुख्य रूप से दो प्रकार का है- 1. भोजनसम्बन्धी और 2. कर्मसम्बन्धी।64 उपासकदशासूत्र में भोजन-सम्बन्धी इक्कीस वस्तुओं के परिमाण का उल्लेख है।5 श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र में उपभोगपरिभोग सम्बन्धी छब्बीस प्रकार की वस्तुओं के परिमाण का निर्देश है। जो इस प्रकार हैं 661. उदद्रवणिका विधि- शरीर आदि पोंछने में उपयोग आने वाले रूमाल, तौलिया की संख्या रखना। 2. दन्तधावन विधि- दाँत साफ करने के लिए मंजन आदि की मर्यादा करना। प्राचीन युग में बबूल, नीम, मुलैठी आदि की लकड़ी से दातुन करते थे। वर्तमान युग में टूथपेस्ट, दन्तमंजन आदि से दंतधावन करते हैं। 3. फल विधि- केश, नेत्र आदि धोने के लिए विशेष उपयोग में आने वाले ____ फल की मर्यादा करना। 4. अभ्यंगन विधि- मालिश हेतु काम आने वाले तेलों की संख्या एवं मात्रा निश्चित करना। 5. उद्वर्त्तन विधि- शरीर पर लगाने वाले उबटन आदि का परिमाण करना। 6. स्नान विधि- स्नान हेतु जल की मर्यादा निश्चित करना। 7. वस्त्र विधि- पहनने योग्य वस्त्रों के प्रकार, जैसे-ऊनी, रेशमी, सूती · आदि की संख्या तथा मर्यादा रखना। 8. विलेपन विधि- शरीर पर लेप करने योग्य पदार्थ, जैसे-चंदन, अगर आदि की सीमा निर्धारित करना। 9. पुष्प विधि- पुष्पों के प्रकार की संख्या एवं सीमा का निर्धारण करना। 10. आभरण विधि- आभूषणों के प्रकार की संख्या एवं मर्यादा रखना। 11. धूप विधि- अगरबत्ती आदि धूप योग्य सामग्री की मर्यादा रखना।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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