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158... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
गमनागमन के क्षेत्र को स्वेच्छापूर्वक सीमित किया जाता है। यह मर्यादा कोस, मील, किलोमीटर, आदि किसी भी पैमाने में निर्धारित की जा सकती है। इसी के साथ स्वेच्छापूर्वक किसी दिशा में अधिक, किस दिशा में कम मर्यादा भी रखी जा सकती है, किन्तु आवश्यकता से अधिक क्षेत्र की मर्यादा नहीं रखनी चाहिए।
दूसरे, दिशापरिमाण व्रत का संकल्प जीवन भर के लिए होता है, जबकि उससे कम समय के लिए मर्यादा करना देशावगासिक व्रत है।
दिशापरिमाण व्रत के अतिचार- दिशापरिमाण व्रत में की गई मर्यादा का उल्लंघन करना अतिचार कहलाता है। इस व्रत में निम्न पाँच प्रकार के अतिचार लगते हैं 57
1. ऊर्ध्वदिशा परिमाणातिक्रम- ऊर्ध्वदिशा में गमनागमन के लिए की गई क्षेत्र-मर्यादा का उल्लंघन करना।
2. अधोदिशा परिमाणातिक्रम- अधोदिशा में रखी गई गमनागमन की मर्यादा का उल्लंघन करना।
3. तिर्यग्दिशा परिमाणातिक्रम- चार दिशाओं और चार विदिशाओं में रखी गई क्षेत्र-मर्यादा का अतिक्रमण हो जाना।
4. क्षेत्रवृद्धि- एक दिशा के लिए की गई मर्यादा को कम करके दूसरी दिशा की मर्यादा बढ़ा देना।
5. स्मृतिभ्रंश- निश्चित की गई मर्यादा का विस्मृतिवश अतिक्रमण हो जाना अथवा पुन: स्मृति का विषय बनने पर भी मर्यादित क्षेत्र से आगे बढ़ना है।
दिशापरिमाण व्रत की उपादेयता- वर्तमान युग में इस व्रत की अत्यधिक प्रासंगिकता है। यदि प्रत्येक राष्ट्र अपनी-अपनी राजनीतिक और आर्थिक सीमाएँ निश्चित कर ले, तो बहुत से संघर्ष स्वत: मिट सकते हैं और अनेकों अन्तराष्ट्रीय-समस्याओं का समाधान हो सकता है। भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रों की पारस्परिक सौहार्द्रता को बनाए रखने के लिए पंचशील के रूप में आचार संहिता निर्मित की थी, उसमें इस पर अधिक बल दिया गया था कि एक राज्य दूसरे राज्य में हस्तक्षेप न करें। यह व्रत अन्य दृष्टियों से भी महत्वपूर्ण प्रतीत होता है।
दिशाओं की मर्यादा निर्धारित हो जाने से तृष्णा पर स्वत: नियंत्रण हो