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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...151 आलिंगन आदि कामचेष्टाएँ करना अनंगक्रीड़ा है।
4. परविवाहकरण- अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के अतिरिक्त अन्यों के विवाह सम्बन्ध करवाना।
5. कामभोगतीव्राभिलाषा- विषयभोग और कामक्रीड़ा में तीव्र आसक्ति भाव रखना, अथवा कामोद्दीपन करने वाली औषधियों का सेवन कर विषय वासना में प्रवृत्त होना।40
बौद्ध ग्रन्थों में भी गृहस्थ साधक के लिए स्वपत्नी या स्वपति संतोषव्रत का विधान है। सुत्तनिपात में बुद्ध ने कहा है-यदि ब्रह्मचर्य का पालन न हो सकें, तो कम से कम परस्त्री का अतिक्रमण न करें।41
ब्रह्मचर्य की महिमा- भारतीय मूर्धन्य मनीषियों ने ब्रह्मचर्य को मानव जीवन के उत्थान का मेरूदण्ड कहा है। साधना का मूल आधार ब्रह्मचर्य है। सभी व्रतों का मूल स्तम्भ भी ब्रह्मव्रत है। सभी तपों में ब्रह्मचर्य को उत्तम तप कहा गया है। इस तप शक्ति को जाग्रत करके अनेकानेक
साधकों ने विविध लब्धियों एवं ऋद्धियों को प्राप्त किया है। इसकी महिमा अपरम्पार है। एक जगह लिखा गया है कि प्रतिदिन करोड़ों मोहरों का दान करने की अपेक्षा एक दिन ब्रह्मव्रत पालन करने का फल अधिक है।
ब्रह्मचर्य व्रत की उपादेयता- ब्रह्मचर्य आत्मा की आन्तरिक शक्ति है। इस शक्ति के विकसित होने पर विश्व की अन्य शक्तियाँ ब्रह्मचारी के चरणों में स्वत: लौटने लगती हैं। ब्रह्मचारी को देवराज इन्द्र भी नमन करते हैं। उसकी कीर्ति विश्वव्यापी हो जाती है। उसका बुद्धिबल, रूपबल आदि उत्तरोत्तर बढ़ता रहता है। दुष्टों एवं शत्रुओं द्वारा किए जाने वाले मंत्र, तंत्र, कामण आदि का उस पर यत्किंचित् भी असर नहीं होता है। मनोविज्ञान की दृष्टि से देखें, तो ब्रह्मचारी के मन में स्वपत्नी के सिवाय अन्य स्त्रियों के प्रति मातृभाव और भगिनीभाव ही रहता है उसकी वासनाओं के द्वार बन्द हो जाते हैं तथा यावज्जीवन वेश्यागमन, परस्त्रीगमन जैसे व्यसन समाप्त हो जाते हैं। इसके फलस्वरूप उसका जीवन सदाचार और सात्त्विक वृत्ति के साथ आगे बढ़ता हुआ परम आनन्द के साथ गुजरता है। आध्यात्मिक दृष्टि से वह निश्चित ही मोक्षपद को उपलब्ध करता है। व्यावहारिक दृष्टि से विचार करें, तो समाज में प्रतिष्ठा को प्राप्त होता है। लोग उसे आदर्श पुरूष के रूप में मानते हैं। धार्मिक स्थलों पर वह अनुकरणीय