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________________ बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...149 नियन्त्रण होता है, व्रती का कल्याण होता है, जीवन शुद्ध बनता है और सरलता प्राप्त होती है। वह शीघ्र ही समस्त दुःख और पाप कर्मों का क्षय करता है।35 __योगशास्त्र में कहा गया है कि अचौर्यव्रती के पास लक्ष्मी स्वयंवरा की तरह चली आती है। उनके समस्त अनर्थ दूर हो जाते हैं। सर्वत्र उसकी प्रशंसा होती है और स्वर्गादि सुख प्राप्त होते हैं।36 ___हानियाँ- संयोगवश सेंध लगाकर चोरी करते हुए चोर पकड़ा जाए तो उसे कारागार भुगतना पड़ता है, मार-पीट, ताड़ना-तर्जना, आदि अनेक प्रकार के कष्ट सहने होते हैं। कभी-कभी इन भयानक कष्टों के कारण अकालमृत्यु का ग्रास भी बनना पड़ता है। अन्य प्रकार की चोरियाँ करते हुए भी कोई व्यक्ति पकड़ा जाए, तो वह धन के साथ प्राणों से भी हाथ धो बैठता है, राजदण्ड का अधिकारी बन सकता है, लोकनिन्दा का पात्र बनता है। लोकविरूद्ध और धर्मविरूद्ध कार्य करने से व्यक्ति सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक एवं धार्मिक दृष्टि से भी गिर जाता है, परलोक में भी दुष्कर्मों के परिणामस्वरूप अनेक प्रकार के दुःख भोगता है अत: श्रावक को स्थूल चोरी का सर्वथा परिहार करना चाहिए। योगशास्त्र के अनुसार चोरी करने से अथवा चोर की सहायता करने से यह जीव इस भव में राजदण्ड, वध, अंगछेदन, कारावास, देशनिकाला, स्वजन का वियोग, लोकनिंदा, वेदना, अकालवृद्धत्व, कुत्सितदेह और नरकगति को प्राप्त करता है तथा परभव में अनार्यत्व, हीनकुल, नीचगोत्र, जड़बुद्धि, धर्महीनता, मिथ्यात्व और गहन दु:खों के साथ अनंत संसार वृद्धि को प्राप्त होता है।37 4. ब्रह्मचर्य अणुव्रत यह श्रावक का चौथा अणुव्रत है। इसे स्वदारासंतोषव्रत या स्वपतिसंतोषव्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को स्वीकार करने वाला साधक स्वपत्नी के अतिरिक्त शेष मैथुन से विरत हो जाता है। __ वह प्रतिज्ञा करता है-“मैं विधिपूर्वक विवाहित स्वपत्नी के सिवाय शेष सभी स्त्री जाति के साथ मैथुन का परित्याग करता हूँ, यावज्जीवन के लिए देवदेवी सम्बन्धी मैथुन का दो करण और तीन योगपूर्वक, इसी तरह पुरुष-स्त्री और तिर्यंच-तिर्यंचणी सम्बन्धी मैथुन सेवन का एक करण एक योग पूर्वक त्याग करता हूँ।"
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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