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________________ 124... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... परिणाम है। पूर्व परम्परानुसार वास-अभिमन्त्रण की प्रक्रिया तीन या सात बार की जानी चाहिए तथा व्रतप्रदाता उपाध्याय हो, तो उन्हें वर्धमानविद्या द्वारा और आचार्य हो, तो उन्हें सूरिमन्त्र द्वारा वासचूर्ण अभिमन्त्रित करना चाहिए, क्योंकि वे उस मन्त्र के आराधक होते हैं। स्तुतिदान की अपेक्षा- तिलकाचार्यकृत सामाचारी में बढ़ती हुई चार स्तुतियों के साथ शांतिनाथ भगवान, श्रुतदेवता, शासनदेवता एवं समस्त वैयावृत्यकर-देवता ऐसी कुल आठ स्तुतियों के साथ देववन्दन करने का उल्लेख है।118 यहाँ ‘बढ़ती हुई स्तुतियों' का अर्थ है-जिनमें स्वर और अक्षर क्रमश: बढ़ते हुए हों। इसका दूसरा नाम ‘वर्द्धमानस्तुति' है क्योंकि ये स्तुतियाँ वर्धमान स्वामी से सम्बन्धित हैं। सुबोधासामाचारी में उक्त आठ स्तुतियों के साथ द्वादशांगी देवता के नाम का भी उल्लेख है। इस प्रकार इसमें नौ स्तुतियों के साथ देववन्दन करने का निर्देश है।119 विधिमार्गप्रपा में कुल अठारह स्तुतियों के साथ देववन्दन करने का निर्देश है। इन अठारह स्तुतियों में से पहली वर्द्धमानस्वामी की, दूसरी चौबीस तीर्थंकर की, तीसरी श्रुतज्ञान की, चौथी सम्यक्त्वी देवी-देवतओं की। फिर क्रमश: श्री शांतिनाथ, शांतिदेवता, श्रुतदेवता, भुवनदेवता, क्षेत्रदेवता, अंबिकादेवी, पद्मावतीदेवी, चक्रेश्वरीदेवी, अच्छुप्तादेवी, कुबेरदेवता, ब्रह्मशांतिदेवता, गोत्रदेवता, शक्रादि वैयावृत्यकरदेवता और शासनदेवता की बोली जाती है।120 आचार्य जिनप्रभसूरि ने विधिमार्गप्रपा में यह भी उल्लेख किया है कि अम्बिका देवी तक की स्तुतियाँ सभी को अवश्य बोलनी चाहिए, शेष के लिए कोई नियम नहीं है। साथ ही पद्मावतीदेवी को खरतरपरम्परा की गच्छदेवी के रूप में स्वीकार किया है, अत: उनकी स्तुति बोलना भी आवश्यक माना है। ____ आचारदिनकर में बढ़ती हुई चार स्तुतियाँ, शान्तिनाथ, श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता, शासनदेवता और शक्रादि वैयावृत्यकरदेवता-इन दस की स्तुतियाँ बोलने का सूचन है।121 स्तोत्रपाठ की अपेक्षा- सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा 22 एवं आचारदिनकर में परम्परागत रूप से देववंदन के समय ‘अरिहाण' नामक स्तोत्र बोला जाना चाहिए-ऐसा निर्देश है, जबकि तिलकाचार्य सामाचारी में
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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