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122... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
कि व्रतविशेष, तपविशेष या पदविशेष के प्रसंगों पर ही वासचूर्ण का प्रयोग किया जाना चाहिए। वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है कि यह मुनियों के लिए एक आवश्यक कर्तव्य - सा हो गया है। आम लोगों का बढ़ता हुआ विश्वास देखकर कईं बार 'देना पड़ेगा' - इस वजह से भी वासदान किया जाता है। वासचूर्ण डालने का एक प्रयोजन यह भी समझ में आता है कि जिस प्रकार इस चूर्ण की सुगंध सर्वत्र फैल रही है, उसी प्रकार व्रतधारी का जीवन भी सुगंधित वास की तरह विकसित बनें और स्वयं के भीतर छिपे हुए शाश्वत आनन्द को समुपलब्ध करें।
धर्मदेशना क्यों सुनें? - तीर्थंकरों के शासनकाल से यह परम्परा चली आ रही है कि व्रतदान की समाप्ति के अनन्तर गुरू द्वारा धर्मदशना दी जाए और व्रतग्राही द्वारा यथाशक्ति अभिग्रह, नियम आदि स्वीकार किए जाएं। उस समय पुरूष वर्ग घुटने के बल बैठकर और स्त्रियाँ खड़ी होकर धर्मदेशना सुनें। समवसरण में भी स्त्रियाँ खड़ी रहती हैं।
विधिमार्गप्रपा में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है। इसका मुख्य कारण स्थान को पवित्र बनाए रखना, स्त्रियों की सुन्दरता आदि देखकर तज्जनित काम-वासनाओं से मुक्त रहना तथा ब्रह्मचर्य व्रत को परिपुष्ट करना आदि है।
साधर्मीवात्सल्य किस हेतु से? - व्रतग्रहण के दिन व्रतग्राही या उनके कुटुम्बीवर्ग द्वारा यथाशक्ति स्वधर्मीवात्सल्य का आयोजन किया जाना चाहिए। इसका प्रयोजन सकल संघ एवं समस्त बन्धुवर्ग के प्रति आत्मीयता, मित्रता, सौहार्द्रता आदि गुणों को प्रकट करना एवं व्रत ग्रहण के आनंद को अभिव्यक्त करना है।
व्रत ग्रहण के दिन प्रत्याख्यान क्यों ? - व्रत ग्रहण के दिन व्रतग्राही आयंबिल या उपवासादि तप का प्रत्याख्यान करता है। इसके पीछे मुख्य ध्येय व्रत को दृढ़ता के साथ ग्रहण करने एवं कठोरता के साथ पालन करने का माना गया है। दूसरा ध्येय यह है कि व्रत के साथ तप का सुमेल हो, तो वह व्रत अधिक स्थाई, प्रभावी एवं फलदायी बनता है। तीसरा कारण साधक की मनोभूमिका से सम्बन्धित हो सकता है। वह यह है कि तप पूर्वक व्रत ग्रहण करने से उसकी मनोभूमि पर ये संस्कार स्थाई बन जाते हैं और